यह 'अर्घ्य' है इक्यावन कविताओं का, जिसे मैं अर्पण करती हूँ हिंदी भाषा के प्रगल्भ साहित्य- सूर्य को, समस्त गुरुजनों को, जिन्होंने भाषा के वर्ण, व्याकरण और वैशिष्ट्य से अवगत कराया, मेरे माता- पिता को, जिन्होंने भाषाओं की समझ, सामर्थ्य, सौंदर्य और महत्व से अवगत कराया और अच्छे से अच्छा साहित्य पढ़ने हेतु प्रेरित किया और उपलब्ध कराया।
यही कारण रहा कि विभिन्न भाषा - साहित्य से सांठ- गांठ सदैव बनी रही और सारे मनोभाव, विचार और अनुभव, लेखनी के माध्यम से कागज पर उतरने लगे। समय के साथ पठन- पाठन और लेखन परिष्कृत होता रहा।
श्रीमान प्रदीप जोशी के सुझाव पर पत्रकारिता और जनसंचार विषय में एकवर्षीय पाठ्यक्रम पूरा किया, और तभी से रचनाओं के प्रकाशन का स्वाद चखा, जो आज भी मीठा लगता है।
अब, जब जीवन के पचास दशक पूरे हो रहे हैं, अपनी चुनिंदा इक्यावन रचनाओं का यह पुष्पहार उन सभी को भेंट करती हूँ, जिनके व्यक्तित्व, विचार, व्यवहार और अनुभवों से मेरे लेखन को समृद्धि प्राप्त हुई( इस सूचि में मेरी स्वर्गीय स्नेहिल दादी सर्वोपरि है)।
सभी के आशीर्वाद से पठन- पाठन, अध्ययन और लेखन की प्रक्रिया अनवरत् चलती रहेगी। यही कारण है कि 'अर्घ्य' कविता संग्रह में पहली कविता ' अर्घ्य' है और अंतिम कविता है ' आरंभ '!
सभी कविताओं के अनुक्रम में प्रवाह- सा बनाने का प्रयत्न किया है, जिसमें समविषयी कविताओं को एक साथ रखने की कोशिश की गई है। विषय विशेष और दिन विशेष के उपलक्ष्य में लिखी कविताऐं, जैसे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर लिखी ' देह से परे ' और ' खाली वक्त ' , अनुक्रम में पास- पास रखी हैं।
कोरोना काल में शहरों से गांव की ओर पलायन करते मजदूरों की त्रासदी को व्यक्त करती कविता ' ' 'शून्य का प्रवासी' और कुछ अन्य कविताऐं समय- समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। कुछ कविताऐं वर्षों पूर्व आकाशवाणी की 'काव्य- गोष्ठी ' में शामिल हुई हैं। कविता,' हिंदी की जय हो', 'सीमा के प्रहरी', 'फाग गीत' या फिर ' माई री ' हो या ' 'स्वराहुति ', समय - समय पर भिन्न भाव, अनुभव, विचार और कल्पनाऐं इन कविताओं के माध्यम से व्यक्त करती आ रही हूँ और अब उन्हें संकलित कर, काव्य- संग्रह का रूप देने का प्रयत्न किया है।( कुछ तृटियाँ अवश्य रही होंगी जिनके लिये क्षमा प्रार्थी हूंँ।)
जानती हूँ, हिंदी साहित्य के सरोवर में यह संग्रह एक बूँद के समान है, पर जितना जोड़ पाई, उतना नीर अंजुरी में भरकर लाई हूँ ' अर्घ्य ' के रुप में। आशा है आप इसे स्वीकार करेंगे।
आनेवाले समय में हिंदी- उर्दू मिश्रित रचनाओं, मुक्तकों का व लघुकथाओं का संग्र