मेरठ और दिल्ली के विभिन्न प्रकाशनों में लेखन कार्य विगत कई वर्षों से करता रहा हूं। अंतिम समय डायमंड पाकेट बुक्स दिल्ली से प्रकाशित होता रहा तथा उक्त प्रकाशन से उपन्यास प्रकाशन का कार्य समाप्त होने के उपरान्त एक लम्बा अंतराल लेखन के क्षेत्र में आया। तत्पश्चात आप पाठकों के सम्मुख पुनः...More
मेरठ और दिल्ली के विभिन्न प्रकाशनों में लेखन कार्य विगत कई वर्षों से करता रहा हूं। अंतिम समय डायमंड पाकेट बुक्स दिल्ली से प्रकाशित होता रहा तथा उक्त प्रकाशन से उपन्यास प्रकाशन का कार्य समाप्त होने के उपरान्त एक लम्बा अंतराल लेखन के क्षेत्र में आया। तत्पश्चात आप पाठकों के सम्मुख पुनः आने का अवसर प्राप्त हुआ।
Book Summary
वांग ली का एक और ज़बरदस्त क़हक़हा–“अभी भी उसी ग़लतफ़हमी में जी रही हो कि पकड़े जाने के बावजूद सोलंकी को बचाकर यहां से निकल जाओगी....ग्रेट...! वाकई बहादुर हो। कुछ कर सको या न कर सको लेकिन कुछ करने की ख़्वाहिशमंद तो हो ही। मानना पड़ेगा, तुम इण्डियन्स में जज़्बा ग़ज़ब का होता है। प्रशंसा के योग्य। सरेण्डर कर चुकी हो मगर जोश से लबरेज़ हो। मौत सर पर नाच रही है –अगले पल की ख़बर नहीं मगर झुकने को तैयार नहीं–है न?”
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उस अति आधुनिक टैंक टाइप 99ए को लक्ष्य करके गोलियां बरसाई जाने लगीं –जबकि टैंक के अंदर का जायज़ा लेने के उपरान्त शिवांगी के होठों पर ज़हरीली मुस्कान फैलती चली गई। वह उस ख़तरनाक टैंक का दरवाज़ा अंदर से लॉक कर चुकी थी। उसने ड्राइविंग सीट संभाली फिर उसकी उंगलियां इंफ़्रारेड टैªकिंग सिस्टम के बोर्ड में लगे बटनों से खेलने लगीं। बड़ी तेज़ी से वह टैंक के सभी सिस्टम्स को लोड करती चली जा रही थी।
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“सोच समझकर पत्थर फेंकें रहने वाले शीशमहल के”
शिवांगी सीरीज़ का हैरतअंगेज़ कारनामा