હું પ્રશાંત સુભાષચંદ્ર સાળુંકે ઉર્ફ યોગી પ્રશાંતનાથ જ્યોતિઁનાથ નાથબાવા વડોદરાનો નિવાસી છું. મને લેખન અને વાંચનનો ખૂબ શોખ છે. મારી વાર્તાઓને હું મારા માનસપુત્ર સમજી તેમને અનહદ ચાહું છે.
Book Summary
एक इंसान अँधेरे कोने में बैठकर कम्प्यूटर पर कुछ टाइप कर रहा था।
उसके कम्प्यूटर स्क्रीन पर अंकित हो रहा संदेश, कुछ इस प्रकार का था।
“तुमने जो कहा मैंने किया... अब तो मुझे बख्स दो....”
प्रति उत्तर में स्क्रीन पर शब्द उमड़ आए।
“तुम्हारेपास सिर्फ दो ही विकल्प बचे है। जिल्लत सेभरी जिंदगी या
सूकू न की मौत, तुम्हेंजो विकल्प पसंद है वह तुरंत चुन लो क्योंकि तुम्हारे पास अब
वक्त बहुत कम है... तुम्हारा समय शुरू होता हैअब....”
कम्प्यूटर के सामने बैठा वह इंसान बैचेन हो उठा, उसके माथे पर पसीने
की बूंदे साफ़ साफ़ नजर आ रही थीं, तभी उसके कम्प्यूटर स्क्रीन पर बारी बारी से
अक्षर उमड़ पड़े...
३
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“रुको...” ऐसा कहते हुए वह बंदा पास रखी बंदूक पर किसी छलावे की
मानिंद लपक पड़ा।
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भोजन की मेज पर बैठी मोहिनी को उसकी भाभी गायत्री ने सैंडविच देते
हुए पूछा, “बिटियाँ, तेरी मास्टर डिग्री की तैयारी कै सी चल रही है?”
अपनी मास्टर डिग्री की तैयारी में जुटी हुई “मोहिनी” एक तेजस्वी छात्रा
के साथ साथ बला की खूबसूरत भी थी। स्वर्गकी अप्सरा भी उसके सामने शरमा
जाए ऐसा उसका हुस्न था। उसके मुलायम गालो पर पड़ते डिम्पल किसी को भी
घायल करनेके लिए काफी थे। इस तरह मोहिनी बेनुमुन हुस्न और तीक्ष्ण बुद्धि की
मालिक थी।