''तुम केवल अपने प्यार को तो पा सकोगे... बाकी सब कुछ हार जाओगे... हम तुम्हें कभी क्षमा नहीं कर पायेंगे... हम तुम्हें कभी क्षमा नहीं कर पायेंगे..।'' ये शब्द बार-बार आकाश के कानों में गूँजने लगे, जिनकी जुबान कभी पत्थर की लकीर हुआ करती थी... क्या जवाब देंगे... क्या जवाब देंगे... हम तुम्हें कभी क्षमा नहीं कर पायेंगे...।' आकाश के मस्तिष्क में जबर्दस्त उथल-पुथल मच गई, क्या करे... क्या न करे- आकाश उलझ कर रह गया। आकाश सोचने लगा, अगर प्यार को छोड़ता हूँ तो अनुपमा का क्या होगा... क्या मैं बिना अनुपमा के रह पाऊँगा.... शायद नहीं... मैं...नहीं रह पाऊँगा...लेकिन अनुपमा की मोहब्बत के कारण घर वालों की नफरत... क्या होगा...?' यह सोचते-सोचते आकाश स्वयं में ही बड़बड़ाने लगा।