कई बार कुछ सवालों को हम वक्त के आसरे ये कहकर छोड़ देते हैं कि वक्त ही जवाब देगा।
पर कभी कभी वक्त भी बेवफाई कर जाता है,और बिना जवाब दिए ही भाग जाता है।
"क्यों" का जवाब जब नहीं मिल पाता,तभी उन सवालों की कहानियां बनती हैं।
उन कहानियों में "क्यों" की ख़ामोशी की सिसकियां होती है,आहें होती है।
"क्यों" की खुश्क दिखने वाली आँखों में एक समंदर छिपा होता है।
मेरे इस कहानी संग्रह में भी कुछ "क्यों" आपसे रूबरू होने का इंतजार कर रहे हैं,तो चलिए कुछ लम्हे "क्यों" के साथ गुजारते हैं।