एक जरा सी फूँक से आग दिख पडे़ सफ़्हों से गुजरते हुए
कोई भूली चीज़ मिले
या चीख़ सुनाई पड़े
आप कागज़ में धधकती उस आग को, मिल के भी अनमिली उस चीज़को, और लफ़्जों के उस ढ़ेर में दबी आवाज़ को नज़्म कहें इसमें मेरा क्या क़ुसूर?
मैं ने कब कोई नज़्म कही?
मैं ने बस शब्दों में बिदा होतें
शोलों से खाक उड़ाई
आप मेरे जले होठ की चिन्ता न करें