कहते हैं आप कि यहां मैं अपने बारे में कुछ लिखूं, क्या लिखूं, लिख दूं यहां अपनी कुछ बचपन की नादानियां, या कि कुछ अपने जवां दिल की बदमाशियां लिखूं, या गुजिश्ता कुल जिंदगी पे कोई अफसाना हसीं लिखूं, यूं तो जिंदगी में सोज़े ग़म के तराने भी कुछ कम नहीं, बहरहाल समझ नहीं आता मुझे कि अपने बारे में मैं...More
कहते हैं आप कि यहां मैं अपने बारे में कुछ लिखूं, क्या लिखूं, लिख दूं यहां अपनी कुछ बचपन की नादानियां, या कि कुछ अपने जवां दिल की बदमाशियां लिखूं, या गुजिश्ता कुल जिंदगी पे कोई अफसाना हसीं लिखूं, यूं तो जिंदगी में सोज़े ग़म के तराने भी कुछ कम नहीं, बहरहाल समझ नहीं आता मुझे कि अपने बारे में मैं खुद ही क्या लिखूं..
-अतुल।
Book Summary
लघु आलेख विधा की परम्परा से परे होने के बावजूद मेरे ह्रदय के सहज विचारों की अभिव्यक्ति है ये मेरा ‘अतुल्या-टॉक्स..’, व्याकरण के मापदण्डों के आगे बौने नजर आने के बावजूद मेरे लेख जमीन की भाषा में बगैर 'मेकअप' के साथ शिक्षाप्रद उपदेशों के रूप में नज़र आते हैं.. मैं मानता हूं कि किसी विधा की परम्परा एवं व्याकरण को अनदेखा नहीं करना चाहिये, परन्तु मैं ये भी मानता हूं कि परम्परायें एवम् व्याकरण विचार नहीं देते, वे विचारों में अपना स्थान तलाशते हैं.. मैंने अपने विचारों और अनुभव की लाठी के सहारे चलने का प्रयास किया है, परन्तु एकदम निरंकुश भाव से भी नहीं.. मुझे यकीन है कि मेरे आलेखों में गेयता का अभाव नहीं मिलेगा आपको..