जिज्जी और कल्लो से आप परिचित नहीं हैं तो आपका यह जन्म व्यर्थ है। ये उस नस्ल के प्राणी हैं जिनकी प्रजाति हमारे आसपास से लुप्त होती जा रही है। शायद किसी बड़े गांव या किसी पिछड़े हुए छोटे कस्बे में इनके नमूने आज भी देखने को मिल जायें।
एक छोटे से कस्बे के एक पुराने मोहल्ले में जिज्जी का पुराना खानदानी मकान है। उनके पिताश्री स्वर्गीय शास्त्री जी और उनके पूर्वज उसी घर में रहा करते थे। शास्त्री जी दबंग किस्म की शख्सियत थे और उनकी विद्वता का डंका पूरे कस्बे में गूंजता था। जिज्जी को उनकी बिटिया होने का गर्व है और प्रायः वह अपना परिचय शास्त्री जी की बिटिया कह कर दिया करती हैं। शादी उनकी हुई नहीं या उन्होंने की नहीं, यह एक बड़ी त्रासदी भरी कहानी है। फिलहाल बस इतना जान लीजिए पचास -पचपन की जिज्जी इतने बड़े मकान में अकेले रहती आ रही हैं।