फेसबुक का मेमोरीज वाला फीचर कितना अच्छा है न! अभी कुछ ही दिनों पहले मेरी ही एक मेमोरी फेसबुक पर मिल गई...
वो कुछ ऐसी थी...
"आज पढ़ाते- पढ़ाते सोच रही थी उडते पंछियों ,फूले हुए गुब्बारों और खिलते फूलों-सा था हमारा बचपन...
चार घंटे की स्कूल होती थी उसके बाद पूरा दिन अपना! क्योंकि पढ़ाई केवल परिक्षा के दिनों में ही होती थी। सारी कॉलोनी हमारा घर था और सारे पेड़ हमारे दोस्त। गोबर-मिट्टी का छोटा-सा घर जिसमें गुड्डे-गुडियों के नाटक! और निर्देशक हम..! हमारी स्क्रिप्ट और हमारे डॉयलॉग!!
ऐसे में आज जब एक स्टूडेंट ने कहा,"दीदी होमवर्क?" तो दिल किया कि होमवर्क यह दूँ कि आज रात आसमान में तारे देखना..या किसी फूल की महक लेना..या बस यूँ ही किसी पेड पर चढ कर बैठ जाना। तालाब या कूएँ के किनारे बैठ कर उसमें कंकर डालना,धूप में बैठ कर ढेर सारे बटले या छोड खाना या दोस्तों के साथ जी भर के साइकिल चलाना....."
सच में..यादें कितनी प्यारी होती है ना? ये यादें ही हैं जो हमारे भीतर के बचपन को जिंदा रखती है।
कहते हैं व्यक्ति को हमेशा वर्तमान में जीना चाहिए। ना भूत में उलझना चाहिए न भविष्य में।
लेकिन मैं कहती हूँ की वर्तमान तभी सुंदर होगा जब आँखों में कुछ सुनहरे सपने होंगें और ज़हन में मीठी यादें...!
यादें, जैसे सूखे रेगिस्तान में ओएसिस... खासकर हमारी पीढी के लिए जिसने 90's का बचपन जिया है..! हमारी पीढ़ी ने वो दिन भी देखे हैं जब हम पोस्टकार्ड लिखते थे और महीनों जवाब का इंतजार करते थे और ये दिन भी जब एक सेकंड में मैसेज का रिप्लाइ आता है...
हमने वो दिन भी जिये हैं जब दूरदर्शन पर केवल रवीवार को एलिस इन वंडरलैंड और मोगली आता था और ये दिन भी जब कार्टून नेटवर्क पर चौबीसों घंटे कार्टून देख सकते हैं।
हमनें चाचा चौधरी, बिल्लू- पिंकी, नंदन -चंपक, नागराज और कैप्टन ध्रूव की कॉमिक्स वाली जादुई दुनिया की भी सैर की है और अब ई-बुक्स की दुनिया का भी मजा ले रहे हैं...!
हमारी ही पीढ़ी है जिसने ठेले पर बिना "हायजीन" की चिंता किये बर्फ का गोला खाया है और डॉमिनोज में चॉकोलावा भी!
हमनें अलटा-पलटा करके एक ही कैसेट के 6-7 गानों को रोज सुना है और अब म्यूजिक ऐप्स पर अनलिमिटेड गानें सुन रहे हैं...(ये बात अलग है कि गाने आज भी नब्बे के ही पसंद आते हैं)
याद है? रास्ते के किनारे बैठे पोस्टर वाले भैय्या..हिरो हिरोईन के पोस्टर से सजी हमारी अलमारी और कमरे के दरवाजे! अब गूगल से चाहे जितने फोटो डाउनलोड कर लो, वह "क्रेज" कहाँ है?
सचमुच हमारी पीढी बहुत खुशनसीब है जिसने सादगी वाला बचपन भी जिया है और अब नई तकनीक और "हायटेक लाईफ" का भी पूरा मजा ले रहे हैं!
शायद हमारी ही पीढ़ी है जिसने इतने "ड्रास्टिक चैंजेस" देखे हैं।
और मुझे यकीन है कि यादों का जो पिटारा हमारे पास है वो अब से आगे वाली किसी पीढ़ी के पास नही होगा....!
और यह भी जानती हूँ मेरी तरह आप सभी कई बार नब्बे के उस दौर में घूम कर आते होंगे...!
तो चलिये .... साथ जीते हैं नब्बे के कुछ सुकून भरे पल।
फिर से स्कूल चलते हैं, इमली-बेर की खटास चखते हैं, बर्फ का गोला खाते हैं, मेले की सैर करते हैं...नानी के घर गर्मियों की छुट्टियाँ मना कर आते हैं...!
मिलती रहूँगी हर सोमवार कुछ यादों ..कुछ किस्सों के साथ......
अपना खयाल रखिएगा।
©ऋचा दीपक कर्पे