ये तारा वो तारा हर तारा
देखूं जिसे भी लगे प्यारा....
कल रात को कानों में हेडफोन लगा कर ये गाना सुन रही थी... और मन चला गया फ्लैशबैक में।
आंखों के सामने आ गया खुला खुला-सा आसमान, आसमान में छिटके तारे, कुछ बहुत चमकते कुछ धुंधले से और साथ में चंदा मामा..!
छत वाली गर्मी की छुट्टियाँ!
90's की यादों में छत वाली छुट्टियाँ न हो ऐसा कैसे हो सकता है?
सुहानी हवा और छत पर लाखों तारों के साथ सारे परिवार का एक साथ सोना, मालवा की सर्द रातो के साथ, कुछ किस्से कुछ बातों के साथ, गद्दियाँ बिछाकर, खाट पर...., तारे गिनते-गिनते, चाँद का हर रूप अपनी आखों में समेटते..सजाते और मीठी सी यादें बनाते।
कोई "प्रायवसी" नाम की चिड़िया नही थी उस समय। बच्चों से लेकर दादा-दादी तक सब छत पर! न किसी पंखे या एसी की जरूरत थी, न किसी "मास्टर बैडरूम" की !
सूरज ढलने के बाद ही छत पर की "एक्टिविटीज़" शुरू हो जाती थी।
कई बार सारा परिवार भोजन भी छत पर ही करता था। आइसक्रीम और कुल्फी पार्टी भी होती थी।
फिर छोटे बच्चों को दादी- नानी कहानियाँ सुनाती थी..परियों वाली, रामायण और महाभारत की..ध्रुव तारे की कथा सुनाई जाती थी। दादाजी-नानाजी तारामंडल दिखाते थे, वो देखो सप्तर्षि... कालपुरुष..
गिनती-पहाड़े याद कराए जाते थे।
सफेद चमकदार हल्के बादलों में लुकाछुपी खेलता चांद कितना सुंदर लगता था। पास ही खिली रातरानी, चमेली की खुशबू वातावरण को खुशनुमा बना देती थी।
गर्मियों में मेंहदी लगाने का कार्यक्रम भी एक बार तो छत पर होता ही था।
आधी-आधी रात तक अंताक्षरी चलती थी। गीतों की महफिल जमती थी। तबला पेटी की संगत होती थी।
परिवार के हर सदस्य का एक खास गीत "फिक्स" होता था। जैसे मेरे दादाजी हमेशा "मेरा जीवन कोटा कागज कोरा ही रह गया" ही गाते थे। और फिर दादी भुनभुनाती थी, "इत्ता अच्छा भरा पूरा परिवार है, अब इनके जिंदगी में क्या कोरा रह गया भगवान ही जाने!!"
ताश की बाजियां लगती थी। कॉलेज में जाने वाले भाई बहन किसी नई फिल्म की "स्टोरी" सुनाते थे। कितनी फिल्में तो हम देखने की बजाय सुन ही लेते थे। लड़कियां स्टोरी सुनाते समय हीरोइन ने किस सीन में कौनसा ड्रेस, कैसे झुमके पहने थे इसकी विस्तार से जानकारी देती थी और लड़के एक्शन सीन बड़ी रोचकता के साथ सुनाते थे!
फिर कोई एक हॉरर कथाएं सुनाना शुरू करता था और सारी रात डर डर कर कट जाती थी!
धीरे-धीरे एक एक का विकेट डाउन होता जाता था, याने कि वे नींद के आगोश में समाते जाते थे...
और कुछ लोग जागते रहते थे, इंतजार करते रहते थे के कब सब सो जाएं और कब वे अपनी "खास बातें" एक दूसरे से कहें....!
न जाने कितनी "लव स्टोरीज" की सफलता का श्रेय तो "छत वाली बातचीत" को ही जाता है!
कभी कभी आधी रात को नींद खुलती तो एक बड़ा सा आसमान, अजीब -सा सन्नाटा, हल्की-हल्की सी हवा, और दूधिया सफेदी में नहाया चांद इतना सुंदर दिखता था जिसे शब्दों में बयां नही किया जा सकता। उस समय उस अनंत आकाश को देखकर एक अलग ही आध्यात्मिक अनुभूति होती थी।
आज मेरा बहुत बड़ा घर है, बड़ी-सी छत है, पर अब छत पर सोना....थोड़ा मुश्किल है,नामुमकिन नही है, वो छत वाली महफिल फिर जम सकती है।
शर्त बस एक ही रहेगी "mobile phones and selfies are not allowed on छत..!"
तो आज मेरा कॉलम पढ़ने के बाद रात को थोड़ी देर छत पर जाकर आसमान जरूर निहारना, तारे गिनना, चांद से कुछ बातें करना।और हाँ फोन नीचे ही रखकर जाना।
मिलती हूँ अगले हफ्ते.... डायरी के पन्नों में बिखरी कुछ यादों के साथ।
अपना खयाल रखिएगा।
- ऋचा