• 29 April 2021

    Poems

    काव्य संग्रह

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    डूबत तगादे-सा मन
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    ~~ रवि पुरोहित

    नेह भी तुम्हारा
    मिलता है
    तनख्वाह-सा
    जैसे ऊंट के मुंह जीरा
    सोच-सोच कर
    करता हूँ उपयोग
    ताकि उम्र के महीने से पहले
    रीत न जाए
    कहीं मेरी सौरम-जेब
    और मैं
    'फूटे करम थे मेरे' की
    स्थाई वंदना-सा
    गाया जाऊं
    जिम्मेदारी की गालियों में
    फिर-फिर

    या कि फिर
    स्कूली पोषाहार-सा पोषण
    हो जाए बीमार,
    किसी सरकारी नल के
    पानी-सी
    झपाक से बंद हो जाए
    सांसें थक कर
    तब किसी गरीब की
    बेटी की इज्जत-सा नाजुक
    यह मन
    साहूकार की बहियों में दर्ज
    कटे अंगूठे-सा भरोसा
    पगला जाए
    चुनाव हारे बड़े नेता-सा...

    तब यह उचाट-विचलित मन
    फिर से
    भाग न खड़ा हो
    छोरी के हाथ पीले करने के
    डूबत तगादे सा।
    @
    - रवि पुरोहित



    रवि पुरोहित रवि


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डा संगीता अग्रवाल - (15 January 2023) 5
क्या बात है!👍👍

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Prem Sharma - (10 May 2021) 5

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