मैं जब विचार करती हूं तो लगता है कि हमारी भारतीय संस्कृति बहुत ही अच्छी थी।मुझे लगता है कि हमारे यहाँ कोई कुप्रथा बाल विवाह,पर्दा प्रथा हो ही नहीं सकती थी।क्योंकि हमारे यहाँ आश्रम व्यवस्था थी और उसमें 25 वर्ष की उम्र में विवाह का विधान था (बह्मचर्य आश्रम के बाद)और ईसा से 500 वर्ष पूर्व रचित"निरुक्त" में इस तरह की प्रथा का वर्णन कहीं नहीं मिलता।प्राचीन वेदों तथा संहिताओं में भी पर्दा प्रथा का विवरण नहीं है।रामायण और महाभारत में भी माँ सीता व कुंती को पर्दे में नहीं देखा। वैदिक व्यवस्था में जो आश्रम की व्यवस्था थी।वह वाकई अनुकरणीय थी ।जब हम मुगलकालीन इतिहास के पन्नों को पलटनाशुरु करते हैं तो दो बातें साफ हो जाती हैं, जब मुस्लिम शासक भारत आये तब यहाँ की स्त्रियों के साथ रेप के मामले सामने आये पहले यहाँ रेप नहीं होते थे ।अतः इन लोगों की बुरी नजर से बचाने के लिये ही पर्दा प्रथा व बालविवाह की शुरुआत हुई ।हमारे देश के लोग ना तो छोटी मानसिकता वाले थे,ना ही रूढ़िवादी ना ही पिछड़े ।मुझे लगता है ये सब परिस्थिति वश करना पड़ा अतः हमें अपनी संस्कृति पर शर्म नहीं बल्कि गर्व होना चाहिये ।रजनी मिश्रा ।