एक रेस्टोरेंट में अचानक ही एक कॉकरोच उड़ते हुए आया और एक महिला की कलाई पर बैठ गया।
महिला भयभीत हो गयी और उछल-उछल कर चिल्लाने लगी…कॉकरोच…कॉकरोच…
उसे इस तरह घबराया देख उसके साथ आये बाकी लोग भी परेशान हो गए …इस आपाधापी में महिला ने एक बार तेजी से हाथ झटका और कॉकरोच उसकी कलाई से छटक कर उसके साथ ही आई एक दूसरी महिला के ऊपर जा गिरा। अब इस महिला के चिल्लाने की बारी थी…वो भी पहली महिला की तरह ही घबरा गयी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी!
दूर खड़ा वेटर ये सब देख रहा था, वह महिला की मदद के लिए उसके करीब पहुंचा कि तभी कॉकरोच उड़ कर उसी के कंधे पर जा बैठा।
वेटर चुपचाप खड़ा रहा। मानो उसे इससे कोई फर्क ही ना पड़ा, वह ध्यान से कॉकरोच की गतिविधियाँ देखने लगा और एक सही मौका देख कर उसने पास रखा नैपकिन पेपर उठाया और कॉकरोच को पकड़ कर बाहर फेंक दिया।
मैं वहां बैठ कर कॉफ़ी पी रही थी और ये सब देखकर मेरे मन में एक सवाल आया….क्या उन महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिए वो कॉकरोच जिम्मेदार था?
यदि हाँ, तो भला वो वेटर क्यों नहीं घबराया?
बल्कि उसने तो बिना परेशान हुए पूरी परिस्थिति (सिचुएशन) को अच्छे से सँभाल (हैंडल) लिया।
दरअसल, वो कॉकरोच नहीं था, बल्कि वो उन औरतों की अक्षमता थी जो कॉकरोच द्वारा पैदा की गयी स्थिति को संभाल नहीं पायीं।
मैंने महसूस (रियलाइज़) किया है कि ये मेरे पिता, मेरे बॉस या मेरी पत्नि ,पति या अन्य किसी का चिल्लाना नहीं है जो मुझे डिस्टर्ब करता है, बल्कि उनके चिल्लाने से पैदा हुई परेशानी(डिस्टर्बेंस)को हैंडल ना कर पाने की मेरी अक्षमता है जो मुझे परेशान करती है।
यानि समस्याओं से कहीं अधिक, मेरी उन समस्याओं पर प्रतिक्रिया है जो मुझे वास्तव में परेशान करती है।
मैं इन सब से सीखती हूँ कि मुझे जिंदगी में प्रतिक्रिया नहीं देनी सही हल ढूढना है ।
महिलाओं ने कॉकरोच की मौजूदगी पर प्रतिक्रिया की थी जबकि वेटर ने उसे बाहर फेंक कर समस्या दूर की थी। क्रिया हमेशा बिना सोचे-समझे की जाती है जबकि समस्या का हल सोच समझ कर किया जाता है ।
जो लोग सुखी हैं वे इसलिए सुखी नहीं हैं क्योंकि उनके जीवन में सबकुछ सही है…वो इसलिए सुखी हैं क्योंकि उनके जीवन में जो कुछ भी होता है उसके प्रति उनकी सोच, उनका व्यवहार सही होता है।