नमस्ते मित्रो,
कार्तिक मास की एकादशी को देवउठनी ग्यारस भी कहते है। पौराणिक कथाओ के अनुसार इस दिन श्री विष्णु निद्रा से जागृत होते है। एकादशी विष्णु को बहुत प्रिय है अतः इस दिन उपवास रखने से सात जनम के पापो का नाश होता है। श्री हरी विष्णु जगत कल्याण के लिए अनेक रूप धारण करते है।उन्होने शंखचूर नामक असुर से युद्ध किया व उसका अंत कर उसे यमपुरी मे पहुचा दिया। इस युद्ध से भगवान थक गए और वे चार महीनो के लिए योगनिद्रा मे चले गए। आषाढ़ मास की एकादशी से कार्तिक मास की एकादशी तक भगवान विष्णु चिरनिद्रा मे चले जाते है। इन दिनो मे मांगलिक कार्य नहीं होते।कार्तिक मास की एकादशी से तुलसी विवाह के साथ ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है।
तुलसी विवाह से संबंधित एक कथा इस प्रकार है जलंधर नाम का एक राजा था, वह सारे राज्य अपने अधिकार में करना चाहता था। वह जब भी युद्ध करने जाता तो उसकी पत्नी वृंदा उसे तिलक करती तथा उसके आने तक श्री विष्णु जी की पूजा करती। जिससे वह राजा युद्ध जीत जाता। धीरे धीरे राजा का अहंकार बढने लगा और सभी लोग उससे परेशान होकर विष्णुजी से मदद मांगने लगे। तब इस बार जब राजा युद्ध के लिए गया तो विष्णु जी उसका रूप लेकर उसके महल में चले गए। वृंदा ने सोचा राजा वापस आ गया तो वह पूजा से उठकर उससे बाते करने लगी। इधर राजा युद्ध में मारा गया और उसका शीश कटकर उसके दरवाजे पर आ गिरा। अपने पति का शीश दरवाजे पर देख वृंदा अचंभित थी, अब विष्णुजी अपने असली रूप में आए। अपने साथ हुए छल से नाराज पतिव्रता वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पाषाण यानि पत्थर का बना दिया। तब वहां नारद जी प्रकट हुए व उन्होने राजा की हकीकत बताते हुए , वृंदा से अपना श्राप वापस लेने को कहा। वृंदा ने विष्णु जी से इसी रूप में विवाह करने का आग्रह करते हुए अपना श्राप वापस लिया। उसी दिन से लोग वृंदा यानि तुलसी का विवाह शालिगराम यानि विष्णु जी से हर वर्ष कार्तिक एकादशी पर करते हैं।’’
देव उठनी ग्यारस के दिन तुलसी पौधे के चारो ओर गन्ने से मंडप की तरह सजाया जाता है। मंत्रोच्चार के साथ तुलसी का विवाह श्री हरी विष्णु शालिग्राम से किया जाता है। आतिशबाज़ी कर प्रसाद बांटा जाता है। घरो मे बेर भाजी आवला देव उठे सांवला की गूंज होती है।
देव पुजा मे भी तुलसी पत्र का बहुत महत्व है। भोग लगाने के लिए भी तुलसी पत्र का प्रयोग होता है। घर मे तुलसी का पौधा लगाना चाहिए जिससे वातावरण शुद्ध होती है। तुलसी पौधे को जल चढ़ाने से व उसकी सेवा से पापो का नाश होता है। बुखार, सर्दी, खांसी आदि बीमारियो मे तुलसी पत्र औषधि का कार्य करता है।
अच्छा मित्रो अगले हफ्ते फिर मिलेंगे किसी नए विषय के साथ। जय तुलसी शालिग्राम जी।
स्वस्थ रहिए, मस्त रहिये, मुसकुराते रहिए। धन्यवाद।
- जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा।