आजकल,लोग बीमार बहुत पड़ते हैं, जितनी सुख सुविधाएं बढ़ी हैं,साथ ही बीमारियां भी उसी अनुपात में साथ चली आईं?तो क्या बीमार पड़ने का कोई संबंध हमारी सुख सुविधाओं से हो सकता है?
जी हां,बड़े अफसोस की बात है कि हम अपने को मिलती आराम पूर्ण जिंदगी को अपना एकमात्र अधिकार समझकर,बीमार पड़ते चले जा रहे हैं।
पहले की लेडीज, सुबह मुर्गे की बांग के साथ उठकर चूल्हा, चौका करती थीं,चक्की चलाती थीं,नीचे पटरे पर बैठकर खाना बनाती थीं,हजार बार ऊपर खड़े होना और नीचे बैठना लेकिन अब,हर काम रेडिमेड, गैस जलाई,खाना बना लिया,एक साथ चार चीज पका लीं, सैंकड़ों वैरायटी बनाना सीख गए हैं हम लोग,सबके लिए अलग अलग ,घंटों खड़े खड़े काम किया,कमरपैर दर्द से दोहरे कर लिए,मन मे लगता रहा, परिवार के लिए काम कर रहे हैं और शरीर बीमार कर लिया।
एक और महत्वपूर्ण बात,सेंट्रली एयर कंडीशंड घरों में रहने के अभ्यस्त हम लोग मौसम की मार झेलने में बिल्कुल असमर्थ होते जा रहे हैं।जरा सी सर्दी लगी,बीमार..जरा गर्मी हुई, हीट स्ट्रोक।
पहले,लोगों की सहनशक्ति भी ज्यादा होती थी,संयुक्त परिवार में,कोई बात किसी ने कह भी दी तो आई गई हो जाती थी पर अब...सब की जबरदस्त सेल्फ रिस्पेक्ट है जो जरा सी बात से चूर चूर हो जाती है और भाई भाई का दुश्मन बन जाता है,बात बंटवारे तक आ के ही निबटती है।
ये अहंकार,ये आजाद रहने का झूठा दंभ,"हम किसी पर आश्रित नहीं है"के नाम का छलावा हम को ऊपर से मुक्त और अंदर से बांधता चला जा रहा है।
फलस्वरूप,हार्ट अटैक,बी पी के परिणाम देखने को मिलते हैं,अब कोई प्रश्न करेगा,इनका हार्ट अटैक से क्या संबंध?
जी,प्रत्यक्ष न दिखे पर संबंध है,दिल पर कितना जोर डालेंगे,बातों का,रिश्तों को इग्नोर करने का,अकेलेपन का और विलासितापूर्ण जिंदगी,मुंह छुट खाना और उसकी एवज में शारीरिक काम बहुत कम करना तो साथ चल ही रहे हैं।
बस,ऐसे ही चीजे बिगड़ती चली जाती हैं और हम बीमार पड़ते रहते हैं।