अपनी अंतरात्मा का सम्मान (प्रेरक कथा)
एक सिद्ध फकीर थे उनकी ख्याति के चर्चे दूर दूर तक फैले थे,,, फकीर बहुत ही सिद्ध पुरुष हैं।
अतः सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मन की शांति के लिए उनके पास जाते थे।
एक दिन एक नव युवक फकीर के ख्याति के चर्चे सुनकर फकीर के पास आया और प्रणाम करके बोला,,, "बाबा ! मुझे आप अपना शिष्य बना लीजिए!"
बाबा ने पहले तो उसको बडे ध्यान से देखा फिर बोले,,, "अगर तुम सचमुच में मेरे शिष्य ही बनना चाहते हो तो पहले शिष्य की जिंदगी का ढंग और तौर-तरीका सीख लो।"
युवक आश्चर्य में पड़कर बोला,,, "मैं कुछ समझा नही बाबा!
शिष्य की जिंदगी का ढंग क्या होता है?"
बाबा ने कहा,,, "बेटा! सच्चा शिष्य पहले अपनी अन्तरात्मा का सम्मान करता है।
जैसे कि, वह तुच्छ लोभ-लालसाओं के लिए और झूठे अभिमान एवं घमंड के लिए अपने आप को धोखा नही देता।"
और अधिक स्पस्टीकरण देते हुए बाबा ने कहा,,, "इस दुनिया मे हर कोई अच्छा होने का दिखाबा करता है।
कोई अच्छा दिखने के लिए तरह -तरह के कपड़े और सजावटी सामान के प्रयोग करता है तो कोई सच्चा बनने के लिए चालाकी से प्रत्यक्ष अच्छे काम करके दुनिया को दिखाने की चेष्ठा करता है।
मनुष्य समझता है कि वह ईश्वर से छुपकर उल्टे-सीधे काम कर सकता है।
लेकिन वह भूल जाता है कि, ईश्वर के लिए न तो दीवारें बाधक हैं न ही तुम्हारा अंतःकरण। ईश्वर सब देखता है ।
सच्चा शिष्य वही है जो अपनी अंतरात्मा में उपस्थित उस परमात्मा का सम्मान करना सीख ले।
अगर तुम इतना कर सकते हो तो, अवश्य ही मेरे शिष्य बन सकते हो।"
इतना सुनकर वह नवयुवक समझ चुका था, अगर मैं हर समय ईश्वर की निगरानी में जीना शुरू कर दूँ, तो मुझे किसी गुरु की आवश्यकता ही क्या है?
अनिला द्विवेदी तिवारी