मेरे अपने अल्फाज ....... !!
मैं अपनी पहचान और स्वभाव, कभी भी किसी से नहीं छुपाती हूँ!
खुली किताब सी हूँ, और इसी तरह सबके सामने दर्शाती हूँ!!
किसी को ना सताती हूँ, ना ही किसी से कुछ चाहती हूँ!
मेरा आत्म सम्मान बचा रहे, बस यही दूसरों से अपेक्षा रखती हूँ!!
मेरी कोई मदद ना करे, ना ही मुझे बाध्य करे, जितना मुझसे संभव है मैं स्वयं मदद के प्रयास करती हूँ!
किसी पर ना ही अत्याचार करती हूँ, ना ही किसी के अत्याचार सहती हूँ!!
चापलूसी किसी की पसंद नहीं, सबका दिल से सम्मान करती हूँ!
ना दिखावा पसंद है, ना ही दिखावा करती हूँ!!
मेरे कुछ उसूल हैं, शायद जो दूसरों को चुभते हैं!
इसीलिए मेरे स्वभाव की लोग अलग-अलग परिभाषा गढ़ते हैं!!
खैर कोई बात नहीं, यहाँ राम और कृष्ण भी कहाँ सुख से रह पाए हैं!
इशू को भी सूली पर चढ़ाया गया था, साँई पर भी पत्थर बरसाए हैं!!
यहाँ सीता को भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है!
जहाँ अहिल्या शापित हो पत्थर बनती है!!
अफसोस है इस बात का, क्रोध का शमन न कर सकी आज तक, पर कभी भी अपने-आप पहल नहीं करती हूँ!
जब भी किसी ने सिर पर ताण्डव किया है, तब ही उसे, उसके अंजाम तक धरती हूँ!!
छोटी-छोटी बातों को भी कभी दिल पर नहीं लेती ना ही उसके लिए झगड़ती हूँ!
पर कोई स्वभिमान को मेरे पैरों तले रौंदे, उसको मैं नहीं सहन करती हूँ!!
जियो और जीने दो उसूल सदा रहा है मेरा, पर इसको दुनिया नहीं समझती है!
दूसरों की जिंदगी में दखल को शायद वह अपनी शान समझती है!!
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश