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अक्षय तृतीया
चैत्र मास की समाप्ति के बाद वैशाख मास की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आखातीज भी कहा जाता है. हमारा देश संस्कृति व परंपरा निभाने वाला व पूर्वजो को मान आदर देने वाला देश है. इस दिन पूर्वजो के निमित्त पानी का घड़ा, खरबूज, पंखा, कैरी , सत्तू का आटा , छाता, इत्यादि सामग्रियों का दान किया जाता है. जिससे अक्षय अर्थात कभी न खत्म होने वाले पुण्य फल की प्राप्ति होती है. पुराणों के अनुसार इस दिन नए युग का प्रारंभ हुआ था. इसी दिन पूरी के जगन्नाथ जी के रथ का निर्माण हुआ था. गंगा नदी भी आकाश से पृथ्वी पर इसी दिन अवतरित हुई थी. पांडव जब वनवास में थे , तब उन्हें भोजन की व्यवस्था करना कठिन हो रहा था. उस समय श्री कृष्ण जी ने अक्षय तृतीया के दिन ही उन्हें एक थाली अक्षय पात्र के रूप में भेंट की थी. जिसका अन्न कभी समाप्त नहीं होता था. यह दिन खरीददारी के लिए व् विवाह के लिए शुभ मुहूर्त माना जाता है. जो की साढ़े तीन श्रेष्ठ मुहूर्तो में से एक है.
आखातीज के दिन ही विष्णु जी के अवतार भगवान् परशुराम जी का जन्म दिवस है. जो सप्त चिरंजीव में से एक है. इनकी जन्मभूमि मध्य प्रदेश के जानापाव में है. ये ब्राम्हण कुल के थे व् इनके वंश में गोपालकृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, वीर सावरकर आदि स्वतंत्रता सेनानियों का जन्म हुआ. ये शास्त्र और शस्त्र दोनों के ज्ञाता थे.
महाराष्ट्रियन परिवारों में सुहागन महिलाये चैत्र मॉस की तीज को गौरी माता की स्थापना करती है. माता का श्रृंगार कर हल्दी कुमकुम फुल माला चढाई जाती है. सुन्दर रंगोली बनाकर महिलाये माता को दाल , करंजी , पना, खरबूज व अन्य खाद्य पदार्थो का भोग लगाती है. महीने भर घर में व् समाज में हल्दी कुंकुं का आयोजन होता है. व् वैशाख की तीज याने आखातीज या अक्षय तृतीया के दिन विसर्जन किया जाता है.
अच्छा मित्रों, अगले हफ्ते फिर मिलेंगें, किसी नए विषय के साथ। जय श्री परशुराम। आप सभी को परशुराम जन्मोत्सव एवं अक्षय तृतीया की बहुत बहुत शुभकामानाएं.
स्वस्थ रहिए, मस्त रहिये, मुस्कुराते रहिए। धन्यवाद.
- जयश्री गोविन्द बेलापुरकर, हरदा