• 23 April 2023

    poem

    किताबे

    0 68

    किताबें

    आलमारी में रखी किताबें आज रो रही है,

    चीख चीख कर पूछ रही हैं

    अब कोई हमें छूता नहीं,

    क्या 21वीं सदी में छुआछूत

    सामाज से निकल कर हम (किताबों) पर आ गया।

    क्या अब लोग ज्ञानी नहीं बनना चाहते

    भूत भविष्य को जानना नहीं चाहते

    वर्तमान में पढ़ना छोड़ दिया,

    ऐसा क्या गुनाह किया हमनें (किताबों),

    जो सलाखों के पीछे आ गए

    केस तो सबका लड़ा जाता

    हमारा नंबर क्यों नहीं आता

    हमे क्यों जमानत नहीं मिलती।

    रचनाकार- प्रतिभा जैन

    टीकमगढ़, मध्य प्रदेश



    Pratibha Jain


Your Rating
blank-star-rating
Sorry ! No Reviews found!