• 19 June 2023

    कविता

    अजब गजब दुनिया

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    अजब गजब दुनिया


    तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यों है...?
    कहीं अपना पन तो, कहीं पीठ में खंजर क्यों है...?

    सुना है तू हर जर्रे में रहता है,
    फिर जमीं पर कहीं मन्दिर कहीं मस्जिद क्यों है...?

    जब रहने वाले दुनियाँ के, हर बन्दे तेरे हैं, फिर कोई दोस्त तो कोई दुश्मन क्यों हैं...?

    तू ही लिखता है, हर किसी का मुकद्दर ,
    फिर कोई बदनसीब, कोई मुकद्दर का सिकन्दर क्यों है...?

    सारी खूबियाँ हमें, खुद में भी नहीं नजर आतीं,
    पर दूसरों में ही बुराई का समंदर क्यों है...?

    सुना था आत्मा में परमात्मा का बास है,
    फिर लोग दूसरे को सताकर इतने खुश क्यों हैं...?

    पता नही क्या लीला है प्रभु तुम्हारी, दुनिया मे मुँह में राम और बगल में छुरी क्यों है...?



    ©अनिला द्विवेदी तिवारी







    अष्टदल समूह


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Kavita Jha Avika - (19 June 2023) 5
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति इन सवालों के जवाब न जाने मिलेंगे के कब

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आस्था सिंघल - (19 June 2023) 5
बहुत बढ़िया कटाक्ष आज के ज़माने पर।

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