पाप कहाँ जाता है ?
24 जून 2023
एक बार एक ऋषि के मन में विचार आया कि,,, लोग गंगा में पाप धोने जाते हैं तो इसका मतलब हुआ, सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गईं!
और उन्होंने अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है?
तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए!
ऋषि ने पूछा,,, "हे भगवन! जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है?"
भगवान ने कहा,,, "चलो गंगा जी से ही पूछते हैं।"
ऋषि देवताओं के साथ गंगाजी के पास गए और कहा,,, "हे गंगे! सब लोग आपके यहाँ पाप धोते हैं, तो इसका मतलब हुआ कि आप भी पापी हुईं!"
गंगाजी ने कहा,,, "मैं क्यों पापी हुई? मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ!"
अब सब लोग समुद्र देव के पास गए और कहा,,, "हे सागर! गंगा जी आपको जो सारे पाप अर्पित कर देती हैं, तो इसका मतलब ये हुआ कि आप भी पापी हुए!"
समुद्र ने कहा,,, "मैं क्यों पापी हुआ? मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बनाकर बादल बना देता हूँ!"
अब वे लोग बादल के पास गए और कहा,,, "हे बादल! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते हैं, तो इसका मतलब आप भी पापी हुए?
बादलों ने कहा,,, "मैं क्यों पापी हुआ? मैं तो सारे पापों को वापस पानी बनाकर बारिश के रूप में धरती पर भेज देता हूँ। जिससे अन्न उपजता है और जिसको मानव खाता है!
उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है, जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, उसी प्रकार मानव की मानसिकता बनती है!"
इसीलिए कहते हैं,,, "जैसा खाये अन्न, वैसा बनता मन!"
अर्थात कथा का सार ये है,,, अन्न को जिस वृत्ति (कमाई) से प्राप्त किया जाता है और जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, वैसे ही विचार मानव के बन जाते हैं।
इसीलिए सदैव भोजन शांत अवस्था मे पूर्ण रुचि के साथ करना चाहिए और कम से कम अन्न जिस धन से खरीदा जाए, वह धन भी श्रम का होना चाहिए।
इस कहानी का एक अन्य अर्थ भी लगाया जा सकता है कि मानव द्वारा जो भी पाप किये जाते हैं और वो सोचते हैं कि सब गंगा नहाने पर धुल जायेगे अपितु ऐसा नही है!
जैसा की अभी आपने पढ़ा कि गंगा, पाप सागर को अर्पित कर देती हैं ।
सागर बादलों को सौप देते है, और बादल वर्षा के रूप में पुनः धरती पर मानवों को लौटा देते हैं।
अर्थात एक चक्र चलता है हमारा किया हुआ पाप पुण्य दुबारा लौट कर हमें ही मिलता है अतः हमें हर कार्य सोच समझकर करना चाहिए!
साभार आध्यात्म दर्शन
अनिला द्विवेदी तिवारी