मिस्टर मेहरा नामी स्कूल के प्रिंसिपल पद से रिटायर; अक्सर अपने पोते-पोती से बातें करते हैं। हां, समय का अंतराल है परंतु दोनों ही वक्त प्रबंधन कर लेते हैं। बहू भी नौकरीपेशा और बेटा भी, उनसे तो केवल एक या दो बार ही बात हो पाती है, दस पंद्रह दिन में। परंतु पोते-पोती से लगातार संपर्क में रहते हैं वह। क्या करें पत्नी तो पांच साल पहले ही गुज़र गई।बेटे ने साथ विदेश चलने का आग्रह तो किया परंतु मेहरा जी भी जानते थे कि वहां अब स्थायित्व पाना उनके लिए नामुमकिन था। बचपन से भारतीय रंग ढंग और माहौल में जीते हुए अब वे अणसठ के हो गए हैं। अब नये सिरे जीवन शुरू करना, उनके लिए असंभव सा है। परंतु एक बात है जो उन्हें उनके एकांकी जीवन में थोड़ा रंग घोलती है, वह है टेक्नॉलॉजी!
क्योंकि आज की भागती-दौड़ती दिनचर्या में किसी से खाली समय की उम्मीद करना, पैसा उधार लेने से भी ज़्यादा मुश्किल है। तब ऐसे में 'मिस्टर मेहरा' जैसे अनेकों लोग जो वृद्धावस्था की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, और साथी की कमी के कारण और भी नीरसता महसूस कर रहे हैं।उनके लिए यह मोबाइल तथा लैपटॉप जैसे यंत्र बहुत सहायक साबित होते हैं। आजकल ऐप्स की बाढ़ के कारण लोगों को तन्हाई में साथी और मनोरंजन तो मिल ही जाता है पर साथ ही साथ उनके साथ धोखाधड़ी का खतरा भी बढ़ जाता है। आजकल सहायता के नाम पर लूटपाट का गुप्त कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। पर यदि इसके फायदों को देखा जाए तो फेसबुक, वॉट्सेप तथा ट्विटर जैसे एप्स में कम्यूनिटी बनी होने के कारण लोगों को समरूचि के लोग भी आसानी से मिल जाते हैं और अपने शौक तथा खाली समय का सही तरह उपयोग कर तथा सही लोगों के साथ समय व्यतीत करने का साधन प्राप्त हो जाता है। जैसे कि विभिन्न गतिविधियों की ऑनलाइन कक्षाएं, ऑनलाइन साहित्यिक मंचों पर कार्यक्रम ऐसे कई और भी कार्य हैं जो घर बैठे लोगों के लिए, फिर चाहे वह बुजुर्ग हो या घर संभालती महिलाएं, उनके लिए लाभदायक सिद्ध होते हैं।
हांलांकि, थोड़ी सी सतर्कता तथा सावधानी बरतने से हम साइबर फ्रॉड से बच सकते हैं।
पर यदि देखा जाए तो इस टेक्नोलॉजी ने लोगों को भीड़ में अकेला भी कर दिया है। फोन और ऐप्स में डूबी पीढ़ी ने उन्हें परिवार से काट दिया है, जिसके कारणवश मजबूरी में घर के बड़ों को भी स्वयं को प्रसन्न तथा व्यस्त रखने हेतु समान साधन अपनाने पड़ते हैं। सामाजिक कहलाने वाला प्राणी, इंसान, अब समाज को पुनः अकेलेपन की ओर ले जा रहा है। सच में आज कलयुग में बूढ़ों का सहारा औलाद से ज़्यादा यंत्र और मंत्र ही हैं।एक इंसान से जोड़ता है और दूजा भगवान से।
खुद में खोई पीढ़ी, चढ़ी कौनसी सीढ़ी।
अपने ही अपने में सब, अपनों के लिए नहीं दो घड़ी।
निशी मंजवानी ✍️