ज्योतिष का अध्यन करते समय अपने कई बार कालपुरुष की कुंडली के विषय में सुना होगा और ये भी सुना होगा की इस ग्रह का इस भाव में बैठना शुभ होता है या इस भाव में बैठना अशुभ होता है, मुमकिन है जिनकी ज्योतिष में रुचि है उनके मन में इसे जानने की जिज्ञासा भी उठती होगी की आखिर कालपुरुष की कुंडली क्या है और कैसे ग्रहों की शुभ और अशुभ अवस्था का निर्धारण किया जाता है।
वैदिक ज्योतिष में प्रथम भाव से लेकर द्वादश भाव तक बारह भाव होते हैं और बारह राशियां होती हैं जो दाएं से बाएं चलती हैं अगर किसी भाव में पांचवी (सिंह) राशि है तो अगले भाव में छठी (कन्या) राशि होगी, प्रत्येक कुंडली में भाव स्थिर रहते हैं अगर राशियां चलायमान होती है सूर्योदय के समय जो राशि होती है उसे लग्न कहा जाता है और फिर वहीं से बाईं ओर राशियां आगे बढ़ती रहती है, उदाहरण के तौर पर अगर सूर्योदय के समय मीन राशि है तो लग्न मीन राशि का होगा और दूसरे भाव में मेष राशि तथा पंचम भाव में कर्क राशि होगी इसी तरह आगे बढ़ते हुए बारहवें भाव में कुंभ राशि होगी।
कालपुरुष की कुंडली की बात करें तो कालपुरुष कुंडली का उल्लेख भारतीय ज्योतिष ग्रंथों मे प्राकृतिक कुंडली के परिपेक्ष्य में किया गया है, कालपुरुष कुंडली में भाव के साथ-साथ राशियां भी स्थिर होती हैं यानी जिस तरह चाहे किसी भी लग्न कुंडली हो उसमें पंचम भाव हमेशा पंचम भाव ही रहेगा ठीक इसी तरह कालपुरुष की कुंडली पहले भाव की राशि पहली यानी मेष पंचम भाव की राशि सिंह और द्वादश भाव की राशि मीन ही रहती है।
अब सवाल ये उठता है की किसी कुंडली में ग्रहों की स्थिति देखकर शुभ और अशुभ स्थिति का निर्धारण किस तरह किया जा सकता है, तो इसके लिए आपको ये समझना होगा की हर राशि का एक स्वामी ग्रह होता है उसी राशि में होने पर उसे स्वग्रही कहा जाता है किसी राशि में वो ग्रह उच्च का होता है और किसी राशि में वो नीच होता है, इसके साथ-साथ उसकी कुछ ग्रहों से मित्रता होती है कुछ का वो शत्रु होता है और कुछ के साथ वो सम रहता है, इसके साथ ही अपने से पंचम नवम होने पर वो शुभ फल प्रदान करता है और स्वयं से छठे, आठवें और बारहवें भाव में होने पर वो तुलनात्मक रूप से उतने अच्छे फल प्रदान नहीं करता है, तो जब जब कालपुरुष की कुंडली से तुलना करने पर ग्रह शुभ अवस्था में होगा तो वह अच्छे फल प्रदान करेगा और जब तुलनात्मक रूप से अशुभ अवस्था में होगा तो जातक को बुरे फल प्राप्त होंगे।
उदाहरण के तौर पर कालपुरुष की कुंडली में बारहवें भाव की राशि मीन राशि होती है और मीन राशि में शुक्र उच्च होता है और बुध नीच का होता है, तो जब भी आप किसी कुंडली में बारहवें भाव में शुक्र बैठा देखें तो आप कह सकते हैं जातक को शुक्र के अच्छे फल प्राप्त होंगे और अगर बारहवें भाव में बुध ग्रह होगा तो जातक को उसके तुलनात्मक रूप से बुरे फल प्राप्त होंगे, बारहवां शुक्र जहां जातक को आध्यात्मिक एवं भौतिक सुख देगा वहीं बारहवें भाव में बैठा बुध जातक को एलर्जी, वाणी दोष या आत्मविश्वास में कमी जैसी समस्याएं दे सकता है।
इसी सूत्र के आधार पर आप बाकी भावों, राशियों एवं ग्रहों का अध्यन कर सकते हैं लेकिन एक बार हमेशा याद रखिएगा कालपुरुष की कुंडली मात्र एक भाग है, इसके अलावा भी अन्य ग्रहों की युतियां, दृष्टियां एवं जातक की देश, काल, परिस्थिति अंतिम परिणाम को बदल सकती है।
विपुल जोशी