आज से सौ साल पहले जो चीजें बुरी मानी जाती थी आज वही चलन में हैं और जो चलन को स्वीकार नहीं करता उसे समाज से बाहर कर दिया जाता है, चीजें समय के साथ बदलती रहती हैं कुछ ऐसा ही कहीं ना कहीं "फलित ज्योतिष" के योगों के साथ भी है।
आज हम चांडाल योग के आधुनिक स्वरूप और इसके सकारात्मक पक्ष पर बात करेगें पहले समझते हैं चांडाल योग क्या होता है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब देव गुरु बृहस्पति राहु के साथ युति करते हैं, तो गुरु चांडाल योग बनता है।
इसमें भी कमाल की बात यह है कि कुछ लोग गुरु केतू की युति को भी चांडाल योग कहते हैं, जबकि गुरु केतु की युति ध्वज योग का निर्माण करती है जो बहुत ही शुभ योग होता है।
पुनः चांडाल योग की ओर लौटते हैं वैदिक ज्योतिष में यह योग बहुत अशुभ माना जाता है. लेकिन शायद ही हमने कभी इसका कारण जानने की कोशिश की, जैसा की हमें ज्ञात है गुरु कुंडली में विद्या के कारक होते हैं और राहु माया के कारक होते हैं और जब विद्या और माया मिलती है तो भ्रम की स्थिति पैदा होती है और ज्यादा विद्या से या अपने प्राथमिक उद्देश्य से विमुख हो जाता है।
सरकारी नौकरी होने के बावजूद अलग से ट्यूशन एवं कोचिंग में पढ़ा रहे टीचर्स की कुंडली में यह योग आसानी से देखा जा सकता है, साथ ही जो लोग ऑनलाइन कोर्स आदि करवा रहे हैं उनकी कुंडली में भी आपको गुरु राहु का संबंध दिख सकता है।
उसका कारण यह है की वो सभी लोग ज्ञान तो बांट रहे हैं मगर उनके ज्ञान बांटने में स्वार्थ ज्यादा और परमार्थ ना के बराबर है, तो ऐसे में कई बार मूल उद्देश्य से भटकने की संभावना बढ़ जाती है।
जो बच्चे पढ़ाई करते वक्त अपने आसपास एक साथ तीन से चार विषयों की किताबें खोकर रखते हैं उनकी कुंडली में भी गुरू राहु का संबंध होता है, जिन लोगों को फूल पत्ती से लेकर अगरबत्ती बनाने तक का थोड़ा-थोड़ा ज्ञान होता है उनकी कुंडली में भी गुरू राहु का संबंध दिख सकता है।
गुरु राहु असल में व्यक्ति को बहुरंगी एवं बहुआयामी बनाता है ऐसे व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान भले ही किसी चीज का ना हो लेकिन थोड़ा-थोड़ा हर क्षेत्र का हो सकता है।
एक उदाहरण की मदद से समझने की कोशिश करें तो कोई भी गुरु नहीं चाहता की उसका शिष्य अपने विषय से हटकर इधर उधर भटके, अगर वर्तमान समय में भी आप स्कूल के अध्यापकों या महाविद्यालय के प्रोफेसरों से बात करें तो वो भी ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन, पीएचडी और फिर उसी स्कूल/कॉलेज में नौकरी प्राप्त कर लेने वाले छात्र को श्रेष्ठ कहेंगे, मुमकिन है ऐसा छात्र श्रेष्ठ भी हो उसके बाद बौद्धिक ज्ञान भरा पड़ा हो लेकिन कई बार ऐसे छात्र व्यवहारिक नहीं हो पाते और दुनिया के साथ तालमेल बैठाने में मात खा जाते हैं।
इसका कारण यह है की दुनिया बदल चुकी है ये दौर मल्टीटेलेंटेड लोगों का या शुद्ध हिंदी में कहें तो तिकड़मबाज किस्म के लोगों का दौर है, यहां कुछ ही मामलों में दो दूनी चार होता है वरना हर बार दो दूनी का उत्तर परिस्थिति के हिसाब से अलग-अलग ही निकलता है।
वैसे तो कोई भी गुरु नहीं चाहता की उसका शिष्य अपने विषय से हटकर इधर उधर भटके लेकिन फिर भी कई बार महाविद्यालयों में भी वही प्रोफेसर ज्यादा कामयाब होता है जो मल्टीटेलेंटेड या शुद्ध हिंदी में कहें तो तिकड़मबाज होता है, ऐसे प्रोफेसर मनचाही पोस्टिंग पाते हैं, अपनी यूनियन के अध्यक्ष बनते हैं फिर बेहद कम समय में नेताओं के सलाहकार होते हुए कुलपति या उसी के समकक्ष किसी पद तक पहुंच जाते हैं।
विपुल जोशी