• 08 May 2024

    अतुल्या-टॉक्स

    ज़िन्दगी की चुनौतियां

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    अतुल्या_टाॅक्स..

    मित्रों किसकी लाइफ में आज चैलेंजेज नहीं हैँ , बाधाएं नहीं हैँ.. अच्छा अगर हैं भी तो उन्हें कोसते रहने से कुछ हासिल है क्या.. मत कोसते रहिये, कहीं ना कहीं ये बाधायें ही हमको फ्रैश और लाईवली बनाये रखती हैँ, इन्हेँ स्वीकार करिये, इन्हे ओवरकम् करिये और अपना तेज बनाये रखिये.. इसी मौजू पर एक बड़ा ही रोचक प्रसंग जो मैंने अभी पढ़ा, आपसे शेयर करने में खुशी हो रही है..

    "जापान में हमेशा से ही मछलियाँ उनके खाने का एक ज़रुरी हिस्सा रही हैं, और ये जितनी ताज़ी होती हैँ लोग उसे उतना ही पसंद करते हैं, मांग करते हैं, लेकिन जापान के समुद्री तटों के आस-पास इतनी मछलियाँ नहीं होतीं की उनसे लोगों की डिमांड पूरी की जा सके, नतीजतन मछुआरों को दूर समुंद्र में जाकर मछलियाँ पकड़नी पड़ती हैं, जब इस तरह से मछलियाँ पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के सामने एक गंभीर समस्या सामने आई, वे जितनी दूर मछली पकड़ने जाते उन्हें लौटने में उतना ही अधिक समय लगता और मछलियाँ बाजार तक पहुँचते-पहुँचते बासी हो जातीँ, ओर फिर कोई उन्हें खरीदना नहीं चाहता, इस समस्या से निपटने के लिए मछुआरों ने अपनी बोट्स पर फ्रीज़र लगवा लिये, वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर में डाल देते, इस तरह से अब वे और भी देर तक मछलियाँ पकड़ सकते थे और उसे फ्रैश बाजार तक पहुंचा सकते थे, पर इसमें भी एक समस्या आ गयी, जापानी लोग फ्रोजेन-फ़िश ओर फ्रेश-फिश में भी आसनी से अंतर कर लेते और फ्रोजेन मछलियों को खरीदने से कतराते, क्योंकि उन्हें तो किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियाँ ही चाहिए होतीं..

    एक बार फिर मछुआरों ने इस समस्या से निपटने की सोची और इस बार एक शानदार तरीका निकाला , उन्होंने अपनी बड़े बड़े जहाजों पर फ़िश टैंक्स ही बनवा लिए ओर अब वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें पानी से भरे टैंकों में डाल देते, टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो मछलियाँ इधर उधर भागती पर जगह कम होने के कारण वे जल्द ही एक जगह स्थिर हो जातीं, और जब ये मछलियाँ बाजार पहुँचती तो भले वे ही सांस तो ले रही होतीं लकिन उनमें वो बात नहीं होती जो आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों मे होती, ओर जापानी लोग चखकर इन मछलियों में भी अंतर कर लेते, देखिये कितना दिलचस्प रहा होगा कि, इतना कुछ करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी..

    अब मछुवारे क्या करते, वे कौन सा उपाय लगाते कि ताज़ी मछलियाँ लोगों तक पहुँच पाती ? नहीं, उन्होंने कुछ नया नहीं किया, वें अभी भी मछलियाँ टैंक्स में ही रखते, पर इस बार वो हर एक टैंक मे एक छोटी सी शार्क मछली भी ङाल देते, शार्क कुछ मछलियों को जरूर खा जाती पर ज्यादातर मछलियाँ बिलकुल ताज़ी पहुंचती..

    ऐसा क्यों होता था, आप बता सकते है? मैं बताता हूं..

    दरअसल, क्योंकि ताकतवर शार्क बाकी छोटी मछलियों के लिए एक चैलेंज की तरह थी, उसकी मौज़ूदगी बाक़ी मछलियों को हमेशा चौकन्ना रखती ओर अपनी जान बचाने के लिए वे हमेशा अलर्ट रहती, इसीलिए कई दिनों तक टैंक में रहने के बावज़ूद उनमे स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता.."

    तो भाया! आज हममें से भी बहुत से लोगों की ज़िन्दगी टैंक में पड़ी उन मछलियों की तरह हो गयी है जिन्हें जगाने की लिए आस पास कोई शार्क मौज़ूद नहीं है, और अगर बद्किस्मति से आपके साथ भी ऐसा ही है, तो आपको भी अपनी जिन्दगी में नये चैलेन्जेस स्वीकार करने होंगे, आप जिस रूटीन के आदि हों चुकें हैँ उससे कुछ अलग करना होगा, आपको अपना दायरा बढ़ाना होगा और एक बार फिर ज़िन्दगी में रोमांच और नयापन लाना होगा, नहीं तो, बासी मछलियों की तरह आपका भी मोल, आपकी भी डिमांड कम होती जायेगी, और लोग आपसे मिलने जुलने की बजाय आपसे बचते ही नजर आएंगे.. और फिर कौन होगा जो ऐसा चाहेंगा..



    अतुल अग्रवाल


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