ज़िंदगी किसकी कितनी है, यह तो किसी को नहीं मालूम, लेकिन उस ज़िंदगी को कितना महत्व देना है यह तो ज़रूर खयाल होना चाहिए। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया से गुज़रती ज़िंदगी सबको अलग-अलग ढंग से पाठ पढ़ाती और समझाती है। पर हर पाठ का सार क्या है??
हां यही तो प्रश्न है, कि एक ही पाठ से हर व्यक्ति अलग अलग सीख लेता है सब अपनी समझ के स्तर के अनुसार ही ज्ञान प्राप्त करते हैं। जबकि पाठ का सार तो एक ही होता है।
हम सबको पता है कि इस ज़िंदगी को कहीं तो थमना है इन सांसों की लढ़ियों को कहीं तो उलझना है और वही हमारा अंतिम क्षण होना है। तो जब तलक ये सांसों की माला हमें महकाती है तब तलक तो हम जीवित हैं परंतु अफसोस हम जागृत नहीं हो पाते। कई दफा इस जीवन माला की खुशबू और मद में हम बहक कर अपना असली मकसद भूल जाते हैं। हमारे अथवा हर जीव का ध्येय, कि सदा स्मरण रखना कि हर क्षण एक टाइम कैप्सूल या सीप की तरह है जहां यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस क्षण में क्या डालते हैं। यदि कुछ अच्छे विचार या कर्म का कण डाला तो निश्चित ही मोती उपजेगा परंतु इसके विपरित यदि इसमें बुरे तथा नकारात्मक अंश डालेंगे तो मोती मिलने की संभावना खत्म हो जाती है। रेत की तरह हाथों से फिसलते इस समय में हम भी बहते जा रहें हैं । उम्र जिस गति से बढ़ रही होती है, पता ही नहीं चलता कब एक रेत का टीला, जिस पर खड़े होकर हाथ पकड़कर, हम खेला करते थे, उसी शिखर की रेत नीचे की तरफ भी धंसती जा रही है और हम हर पल के साथ आहिस्ता आहिस्ता उस जीवन सुरंग में समाते जा रहे हैं। कल हम जिस ऊंचाई से पताका लहरा रहे थे वक्त के साथ उसी शीर्ष के तल की तरफ अवरोहण भी कर रहे हैं। अवरोहण में तो कोई अवरोध निश्चय ही नहीं आएगा परंतु जो मृत्यु तक पहुंचने का सफर सुगम चाहते हैं या कठिन, यह हम पर निर्भर करता है। हम अपने लिए कैसा जीवन चाहते हैं? और क्या पुनः इसी जीवन-मृत्यु के चक्र में प्रवेश करना चाहते हैं? यह सबकुछ केवल हमारे कर्म और विचार तय करते हैं।
तेज़ रफ़्तार दौड़ते इस युग में एक पल ठहरकर स्वयं के भीतर झांकें, परखें और अपने जीवन यात्रा को सुगम बनाने हेतु क्या आवश्यक है उस पर विचार करें। क्योंकि आवरग्लास में फिसलती रेत की तरह समय के वेग को रोकना मुमकिन तो नहीं परंतु उस समय को दिशा परिवर्तन संभव है।
एक ओर ही जाना बंदे, हाथ थामकर चल।
टूटी सांसें तब सोचेंगे, जी लें अभी ये पल।।
निशी ✍️