नमस्ते मित्रों,
आराधना मे आज मैं आपको एक कहानी सुनाने जा रही हूं, एक घर में दो बच्चे अपनी दादी और अपने माता-पिता के साथ रहते थे। एक दिन रात्रि में सोते समय बच्चे दादी से कहानी सुनाने की जिद करने लगे। तब दादी ने उन्हें एक कहानी सुनाई। राज नाम का लड़का था। वह एक गुरुजी से आश्रम मे शिक्षा लेता था। सब बच्चे पास हो गए, पर वह फेल हो गया। तब गुरूजी नाराज हो गए कि तुम निरामूर्ख हो, मैं तुम्हें नहीं पढा सकता और ऐसा कहकर उन्होंने राज को उस आश्रम से निकाल दिया। तब राज वहां से चला गया, पर यह सोचने लगा कि मैं कहां जाऊं क्योंकि घर पर जाकर माता-पिता से क्या कहूंगा। रास्ते में उसे एक कुआं दिखा उसे प्यास भी लग रही थी तो वह उस कुएं के पास रूका और पनिहारिन से पानी लेकर वहीँ बैठ गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए थे कि पढाई मे कमजोर होने के कारण मुझे गुरुजी ने निकाल दिया है, अब मैं क्या करूंगा। तभी उसकी नजर कुएं की पाल पर लगे पत्थर पर पड़ी। उसने देखा कि वह पत्थर जहां से रस्सी लगी है, पानी खींचने के लिए, वहां से कुछ घिसा हुआ है। तब उसने सोचा कि यह इतना मजबूत पत्थर जो किसी को लग जाए तो वह मर ही जाए, वह इस कमजोर सी रस्सी जो नारियल के जूट से बनी है, उससे कैसे घिस गया। तभी उसे वहां से एक संत महात्मा गुजरते हुए दिखे। राज ने उनसे पूछा की मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि यह इतना मजबूत पत्थर इस कमजोर रस्सी से कैसे घिस गया। तब उस संत ने उससे कहा कि जब रोज-रोज इस रस्सी से पानी खींचा जाता है, तो इस रस्सी का जोर उस पत्थर पर पड़ता है। इसलिए वह पत्थर उस जगह से घिस गया है। इतना कहकर वह संत महात्मा वहां से चले गये। तब राज को कुछ समझ आया कि जब यह कमजोर रस्सी इस मजबूत पत्थर पर रोज जोर डालकर उसे घिस सकती है, तो मैं क्यों नहीं पढ़ाई कर सकता। राज ने उसी समय आंसू पोंछे और वापस अपने गुरुजी के पास गया तथा उनसे बोला कि गुरुजी मैं सच में पढ़ाई नहीं करता था, अभ्यास भी नहीं करता था। इसीलिए मैं पढ़ाई में कमजोर था। आप मुझे एक मौका और दीजिए। अब मैं रोज पढ़ूंगा और अभ्यास भी करूंगा। तब गुरुजी ने सोचा कि यह एक मौका मांग रहा है, तो इसे एक मौका दे दे देना चाहिए। तब राज ने उस साल खूब पढ़ाई की, खूब अभ्यास किया और वह पहले नंबर से पास हो गया। फिर बच्चों की दादी ने कहा बेटा इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि किसी कार्य को लगातार, बार-बार किया जाए, तो कोई भी उस कार्य में निपुण हो सकता है।
“करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ही सिल पर पडत निशान’’
अच्छा दोस्तों अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे। तब तक स्वस्थ रहिए, मस्त रहिए, मुस्कुराते रहिए। धन्यवाद
।। श्री दत्तात्रेयार्पणमस्तु ।।
जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा