• 23 August 2024

    रक्षाबंधन

    आराधना

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    नमस्ते मित्रों,
    आराधना मे आज मैं आपको अभी कुछ दिनों पहले मनाए गए त्योहार रक्षाबंधन से संबंधित एक कहानी सुनाने जा रही हूं। एक चिड़िया थी उसने कहीं से ऊन के कुछ टुकड़े इकठ्ठे कर एक सुंदर सी राखी बनाई, व सोचने लगी की कुछ दिनों बाद राखी का त्यौहार आ रहा है, तो इसे मैं अपने भाई कबूतर को बांधूंगी। उस दिन उसके घर उसकी मित्र मैना आई और बोली की तुम यह राखी कबूतर के लिए बना रही हो, पर कबूतर तो यहां नहीं है। वह तो कहीं बाहर गया है। चाहे तो उसके मित्र से पूछ सकती हो। तब चिड़िया कबूतर के मित्र मिट्ठू के पास गई और उससे कबूतर के बारे में पूछने लगी। तब मिट्ठू भी बोला कि हां मैना सही कह रही है। कबूतर यहां नहीं है, वह राखी पर बाहर गया है। अब चिड़िया सोचने लगी की मैं तो कबूतर को ही राखी बांधना चाहती थी। तब उसे साल भर पहले हुई घटना याद आई। दरअसल उस दिन चिड़िया को बहुत जोरों की भूख लगी थी। तो उसे एक पेड़ के पास बहुत सारे दाने पड़े हुए दिखे। जिसे खाने के लिए वह जाने ही वाली थी। तभी कबूतर ने उसे पकड़ कर दूसरे झाड़ पर बैठा दिया। वह कबूतर पर गुस्सा करने लगी कि, तुमने मुझे वह दाने क्यों नहीं खाने दिये। मुझे बहुत जोरों से भूख लग रही है। तब कबूतर ने चिड़िया को दिखाया कि, देखो उस दाने पर बैठे पंछियों का क्या हाल हुआ है। उसने देखा कि दाने खाने बैठे कुछ अन्य पंछी, जो उस दाने को खाने के लिए आए थे, वह एक जाल में फंस गए हैं। शायद किसी शिकारी ने यह जाल बिछाया था। तब उसने कबूतर को धन्यवाद दिया और तब से उसे भाई बनाकर राखी बांधने लगी। पर क्या वह इस बार कबूतर को राखी नहीं बांध पाएगी। फिर भी वह राखी के दिन कबूतर के घर के पास पहुंची। तब कबूतर और मिट्ठू की आवाज सुनाई दी। कबूतर मिट्ठू से कह रहा था कि इस बार राखी पर मुझे चिड़िया को देने के लिए कोई उपहार नहीं है। इसीलिए मैं उसे नहीं मिल रहा हूं। यह सुनकर चिड़िया कबूतर के घर पर पहुंच गई और कबूतर से बोली की मैं केवल उपहार के लिए तुम्हें राखी नहीं बांधती। मेरा उपहार तो तुमने उसी दिन मुझे दे दिया था, जब तुमने मेरी जान बचाई थी। तब कबूतर की आंखें नम हो गई और दोनों ने प्यार से राखी का उत्सव मनाया।
    अच्छा दोस्तों अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे। तब तक स्वस्थ रहिए, मस्त रहिए, मुस्कुराते रहिए। धन्यवाद
    ।। श्री दत्तात्रेयार्पणमस्तु ।।
    जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा



    जयश्री बेलापुरकर


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