• 30 June 2024

    बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-171से आगे समग्र

    बुंदेली दोहा प्रतियोगिता

    5 22



    *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-171*

    बिषय- झिर दिनांक-6/7/2024.

    *संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*

    आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह, टीकमगढ़

    *प्राप्त प्रविष्ठियां :-*


    *1*

    चौमासे की झिर लगी,भूकेँ दुके चरेउ।

    निचुरत ठाँड़ी भैंसियाँ,टिनकेें तरें पड़ेउ।।

    ***

    -प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़

    *2*

    झटक लटैं झिर में चली,झूमर लटकैं कान।

    लखैं बिना मन नहिं लगै,लागै निकसत प्रान।।

    ***

    - प्रदीप खरे 'मंजुल' टीकमगढ़

    *3*

    आये बादर झूम कें, रै रै शोर मचात।

    झर झर झर झर झिर लगी, झूमत मोर दिखात।।

    ***

    -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता 'इंदु',बडागांव झांसी

    *4*

    भादों की झिर में प्रकट,भये कन्हैया लाल।

    हरो भार सब भूमि कौ,बनें कंश के काल।।

    ***

    -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी",हटा

    *5*

    जा साहुन की झिर सखी,पूरै सबकी आस ।

    भरें खेत हरयाइ सें,बुजै साल भर प्यास ।।

    ***

    -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल

    *6*

    लागी झिर कल शाम सें,कीचा मच गइ खूब।

    इन्द्र देव किरपा करो,सबइ गये अब ऊब।।

    ***

    - वीरेन्द्र चंसौरिया ,टीकमगढ़

    *7*

    प्यारी ऋतु बरसात की,मेघ दिखें चहुँ ओर।

    झिर पे बादर आज है,पुरवइया पुर जोर।।

    ***

    -विद्याशरण खरे, नौगांव

    *8*

    ऐसी झिर जा लग गई, चुअना खूब चुचाय।

    मोड़ी मोड़ा रोत हैं,उनखों किते पराय।।

    ***

    - डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल

    *9*

    सावन मइना झिर लगी, मनवा होय अधीर।

    पिया बसे परदेस में,कौन बंँधाबे धीर।।

    ***

    -तरणा खरे, जबलपुर

    *10*

    बाट हेर रय झिर लगै,अब तो सबइँ किसान |

    कुआँ-ताल भरबैं सबइ, कृपा करैं भगवान।।

    ***

    -सुभाष सिंघई, जतारा

    *11*

    झिर में मढ़िया चू रई,गिरी दीन पै गाज।

    कैसें कें चूला जलै,गीलो कंडा नाज।।

    ***

    -विद्या चौहान, फरीदाबाद

    *12*

    झिर लगकैं हाती मघा,बरस जाॅंय जी साल।

    ससकत नइॅंयाॅं जेठ तक,नदी कुआ उर ताल।।

    ***

    -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर

    *13*

    घर में राखौ एकता,सदाँ रैय सुख चैन ।

    बसकारे सी झिर लगै,जुरै सम्पदा ऐंन।।

    ***

    -रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां

    *14*

    चौमासे की झिर लगी,घन गरजत चहुँ ओर।

    धरती पुलकित सी लगे,नाच रहो मन मोर।।

    ***

    -आशा रिछारिया जिला निवाङी

    *15*

    कोप करो जब इंद्र नें,झिर तौ लगी अखंड।

    गोबरधन परबत उठा,टोरो हरी घमंड।।

    ***

    - डॉ.देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा

    *16*

    रावन की लंका जला, चूर करे अभिमान।

    बुझा रये झिर सै तपन,झिन्नन के हनुमान।।

    ***

    - एस आर 'सरल', टीकमगढ़

    *17*

    नीचट पथरा कूप में,पीवे नइँयाँ बूँद।

    फूटी झिर बरसात में,भर लो आँखें मूँद।।

    ***

    - अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी

    *18*

    जब अनोर की झिर लगत,सावन-भादों मास।

    तबइ बुझत है ठीक सें,धरती माँ की प्यास।।

    ***

    -गोकुल प्रसाद यादव नन्हीं टेहरी

    *19*

    चार दिनों से झिर लगी,पानी बरसत खूब।

    ताल तलैयां भर गये,गांव रहे हैं डूब।।

    ***

    -मूरत सिंह यादव,दतिया

    *20*

    झर -झर -झर बूंदें गिरें,सावन की झिर लाग ।

    कन्ता गए विदेश खों ,जरइ देह ज्यों आग।।

    ***

    -रामलाल द्विवेदी प्राणेश, चित्रकूट

    ***

    *संयोजक -राजीव नामदेव राना लिधौरी'*

    आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

    मोबाइल-9893520965

    बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-170*


    *प्रदत्त शब्द- #छरक

    दिनांक 29.6.2024*

    संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'


    आयोजक- जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़


    *प्राप्त प्रविष्ठियां :-*


    *1*

    नँईं धरम से हो छरक,बिनतुआइ भगवान।

    हम चरणन के दास रयँ,बनी रयै पैचान।।

    ***

    -सुभाष सिंघई, जतारा

    *2*


    करिया सबरी दाल है,कैसें हुइये ठीक।

    छरके बैठे छात्र सब,पेपर हो गय लीक।।

    ***

    -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी

    *3*

    छली गई छप्पन छुरी, छलिया बातन आय।

    छरकी अब तौ प्रेम सैं,द्वार प्रभू कौ भाय।।

    ***

    -प्रदीप खरे 'मंजुल', टीकमगढ़

    *4*

    हनुमत लंका बारकें, हरि खों हाल सुनायँ।

    उतै राक्षस गये छरक, बंदर देख डरायँ।।

    ***

    - डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलहरा

    *5*


    दारू पी गर्रात हैं,फिरत रयें बेकार।

    छरक पिड़े मन में इतै, देख पिया व्यौहार।।

    ***

    -रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी

    *6*

    छरक गये बँदरा सभी ,एक शेर जब आव ।

    हिम्मत ना भइ काउ की,बँदरा चूके दाव ।।

    ***

    -शोभाराम दाँगी इन्दु, नंदनवारा

    *7*

    भौत छरक गय व्याव सें, रो रो भर दव ताल।

    कोउ न करियौ भूल कें, है जी कौ जंजाल।।

    ***

    -अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी

    *8*

    छरक गांव के सब गये,जब से आई बारात।

    बारे बूंढ़े देखकें,लरके सभी डरात।।

    ***

    -मूरत सिंह यादव, दतिया

    *9*

    देख बिजूकौ खेत में , उजरा ढोर डराॅंय।

    छरक जात गुथना लगैं, हरिया लौट न आँय।।

    ***

    -आशाराम वर्मा "नादान" पृथ्वीपुर

    *10*

    झटका बिजली घांइॅं जब,डग -डग मानुष खात।

    फिर बा पट्टी न‌इॅं चढ़त,छरक जनम खों जात।।

    ***

    -भगवानसिंह लोधी "अनुरागी",हटा

    *11*

    छरक गये बे आप सें , कै दइ सांसी बात।

    दिन भर अब घर में रतइ , निकरत जब हो रात।।

    ***

    - वीरेन्द्र चंसौरिया, टीकमगढ़


    संयोजक- *-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*

    -

    #######@@@@@#####


    अप्रतियोयी दोहे :-


    [29/06, 12:55 PM] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा- छरक (अरुचि, घृणा )*


    #राना राखौ तुम छरक ,लबरा जितै दिखाँय।

    चुगलन जैसे काम कर ,सबरन खौं भरमाँय।।


    #राना मोरी बात खौं ,तनिक समझियौ आप।

    बिच्छू सैं लैतइ छरक, कौन लैत है चाप।।


    उनसे भी हौतइ छरक, संगत गलत दिखाय।

    #राना विष की बेल भी,सिर पै कौन चढ़ाय।।


    #राना काँतक लै छरक, दुष्ट सामने आय।

    वेश बदलकर सामने, बातन से भरमाय।।


    छू लैतइ है गंदगी ,#राना लापरवाह।

    चलैं छरक कर जौ यहाँ ,सुथरी ऊकी राह।।


    *एक हास्य दोहा*


    धना कात #राना सुनौ ,काय छरक रय आज।

    घर कौ करो उसार तुम ,करौ न कौनउँ लाज।।

    *** ©दिनांक-29.6.2024

    *✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*

    संपादक "आकांक्षा" पत्रिका

    संपादक- 'अनुश्रुति' त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका

    जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़

    अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़

    नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,

    टीकमगढ़ (मप्र)-472001

    मोबाइल- 9893520965

    Email - ranalidhori@gmail.com

    [29/06, 1:36 PM] Shobharam Dagi: अप्रतियोगी बुंदेली दोहा

    प्रदत्त शब्द=छरक(अरूचि/घृणा)

    (०१)

    बँदरा चूके ड़ाल से ,छरक गये ई बार ।

    कूँद न पाये ड़ाल पै, चूके दाव अपार ।।

    (०२)

    छरक गये परसाल सै,लग गव घाटौ भौत ।

    सोच समझ कै काम खों,कन्नै भइया न्यौत ।।

    (०३)

    छरक बैठ गइ ऊ दिना,जिदनां भवतौ ब्याव ।

    ऐसी का जानत हते ,"दाँगी" जौ रट्टियाव ।।

    (०४)

    जिम्मेवारी भौत है ,पूरी को कर पात ।

    छरके बैठे काल के ,जूड़ी सौ चड़ आत ।।

    (०५)

    काम काज ऐसे करौ,सबकौ भलौ दिखाय ।

    "दाँगी" छरक गये अभी,समरौ नहीं समाय ।।

    (०६)

    बिन पैदी के लोग जो ,करवैं ऊसइ काम ।

    एक बेर सैं छरक नहीं ,"दाँगी" ख्वावै दाम ।।

    मौलिक रचना

    शोभारामदाँगी

    [29/06, 1:55 PM] M.l.Ahirwar 'tyagi', Khargapur:



    राजीव नामदेव राना लिधौरी


Your Rating
blank-star-rating
Rajni Namdeo - (30 June 2024) 5
सुंदर दोहे है। श्रेष्ठ बुंदेली साहित्य है

0 0