नौजवान चित्रकार
नमस्ते मित्रों,
आराधना मे आज मैं आपको एक कहानी सुनाने जा रही हूं, किसी राज्य में एक दिव्यांग राजा राज करता था। दिव्यांग अर्थात उसकी एक आंख नहीं थी तथा एक पैर भी नहीं था। पर फिर भी वह अपना राज्य का कार्य भार सुचारू रूप से चला रहा था। राज्य की प्रजा भी उससे खुश थी। एक दिन वह भोजन के बाद अपने महल में घूम रहा था, तभी उसे अपने पूर्वजों के चित्र दीवार पर लगे हुए दिखाई दिए। उसने सोचा एक न एक दिन मेरी भी मृत्यु होनी है। तब मेरा भी एक चित्र इस दीवार पर लग जाएगा। परंतु मेरे पूर्वजो के सभी चित्र सुंदर हैं, पर मेरा चित्र सुंदर नहीं बनेगा क्योंकि मैं दिव्यांग हूं। यह सोचकर वह उदास हो गया। पर फिर उसने सोचा कि क्यों न मरने से पहले ही मेरा एक चित्र बनवा लिया जाए। तब उसने सैनिकों को बुलाया और कहा कि पूरे राज्य में यह ढिंढोरा पिटवा दो कि जो कोई मेरा सुंदर चित्र बनाएगा उसे मैं बहुत सारे सिक्के इनाम में दूंगा तथा यदि वह चित्र सुंदर नहीं बनता है तो उसे उम्र कैद की सजा सुनाई जाएगी। राज्य के बहुत से चित्रकारों ने इस बात को सुना तथा वह सोचने लगे कि इस दिव्यांग राजा का हम सुंदर चित्र कैसे बनाएंगे, यदि राजा को चित्र पसंद नहीं आता है, तो वह हमें उम्र कैद दे देगा। यह सोचकर कोई चित्रकार आगे नहीं आ रहा था। पर राज्य का एक नौजवान चित्रकार आगे आया और उसने राजा से कहा कि मैं आपका सुंदर चित्र बनाऊंगा। राजा ने पूछा कि तुमने पूरी बात सुनी है ना यदि मुझे चित्र पसंद नहीं आता है, तो तुम्हें उम्र कैद भी हो सकती है। तब नौजवान बोला हां मैंने सुना है, पर मेरा चित्र आपको पसंद ही आएगा। तब उस चित्रकार ने राजा को एक चित्र बनाकर दिया और सच में राजा को वह चित्र बहुत पसंद आया। दरअसल चित्रकार ने चित्र में राजा को एक घोड़े पर बैठा हुआ दिखाया था। जिससे राजा का एक ही पैर दिख रहा था तथा दूसरा पैर नहीं दिख रहा था, जो नहीं था तथा राजा शिकार करने के लिए तीर चला रहा था, तो तीर चलाते समय एक आंख बंद होती है, जो राजा की नहीं थी, वहीं आंख बंद दिखाई थी। इस प्रकार उस चित्रकार ने राजा की कमियों को छुपाते हुए उसका सुंदर चित्र बनाया था। तब राजा ने उस चित्रकार को इनाम की पूरी राशि दी तथा खुश होकर उसे दोगुनी राशि दी। तब चित्रकार ने दोगुनी राशि वापस करते हुए कहा, मुझे केवल इनाम की राशि ही दीजिए। उसकी इस ईमानदारी से खुश होकर राजा ने उसे अपना प्रमुख सहायक नियुक्त कर दिया। वह नौजवान चित्रकार भी वहीं राज्य के महल में रहने लगा तथा राज्य का कारभार देखने में राजा की सहायता करने लगा। राजा का कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। तो कुछ सालों बाद राजा ने उस नौजवान चित्रकार की कुशल कामगिरी देखते हुए, उसे ही अपना उत्तराधिकारी बनाकर उसका राज्याभिषेक कर दिया।
अच्छा दोस्तों अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे। तब तक स्वस्थ रहिए, मस्त रहिए, मुस्कुराते रहिए।
।। श्री दत्तात्रेयायर्पणमस्तु ।।
जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा