• 24 July 2024

    मैं और मेरी लकीरें..

    वैचारिकी

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    मैं और मेरी लकीरें..

    अपनी सीमाओं पर सोचना बंद कीजिए..

    आज ही से अपनी वैचारिक संपदाओं की अपार संभावनाओं पर विचार करना शुरू होना चाहिए..

    लकीरें अनेकानेक हैं जीवन में,

    माथे पर चिंता की लकीरें,

    या फिर हथेली पर तक़दीर की लकीरें,

    हमारी जुबान पर अहंकार की लकीरें,

    इस ज़मीन पर बंटवारे की लकीरें,

    और अफसोस कि हमारे रिश्तों में दरार की लकीरें,

    मगर महत्वपूर्ण इतना इंसान नहीं है, जितना उसके स्वभाव के अच्छा होने का है, कोई एक पल में ही दिल जीत लेता है मगर कोई तो जीवन भर साथ रहकर भी पराया सा लगता है.. मगर..

    "था समुंदर मेरी नज़र के सामने, मैं लकीरें बनाता रहा"

    आज ज़िन्दगी के हर मोड़ पर, एक नया ही पैगाम है, जिंदगी का नया फरमान है, उम्मीदों की कश्ती तो है, मगर आये दिन निराशा का दरिया है, हां तो क्या! ज़िन्दगी की इस नाव को तो पार लगाना ही है..

    मैं अक्सर मेरे उम्र चढ़ते जिस्म पर जगह जगह उभर आई कच्ची-पक्की, लाल-नीली लकीरों को बड़े गौर से देखा करता हूं..

    कल तो बड़ी ही अजीब रात हुई, लकीरों से बहुत देर मेरी बात हुई, पहले पहले तो यकीन नहीं हुआ, लकीरें भी कहीं बोलती हैं, पर लकीरों ने ही बताया, वो तो सारे राज़ खोलती हैं, बोलीं, याद करें जब बचपन में तुमने हाथ दिखलाया था, देखकर ज्ञानी जी ने तुम्हें क्या बतलाया था..

    मेरे हाथ की लकीरें देख कर यही न कहा था उनने कि बेटे, जीवन में धन और शिक्षा के योग बहुत ही कम हैं, और थोड़ा ज्यादा देखकर वो बोले थे, आयु भी बस मद्धम मद्धम है, मैं कितना डरा डरा रहा, वर्षों न भूल पाया था, ये तिरछी वाली लकीर कुछ छोटी है, जग में नाम तो नहीं तुम कर पाओगे, सीधी वाली लकीर कुछ मोटी है, क्या उम्मीद कभी तुम अपना घर भी बना पाओगे, छोटी वाली कुछ तिरछी है, पत्नी-सुख में भी कुछ संशय है, लंबी वाली ये कहती है, भाग्योदय में कुछ भय है, ब्ला ब्ला..

    पर, मैंने कौन भला सब कुछ सच मान लिया था, भाग्य से भी क्या लड़ना, सारी लकीरें उम्र भर चीख-चीख चिल्लाती रहीं, उन्हें क्या पता था कि मैं अपने जिस्म पर दिल के करीब उभरी एक और अदृश्य लकीर के प्रभाव में जीता हूं, जो हमेशा मुझे एक गूढ़ राज़ बतलाती रही, वो मन के कोने में पड़ी एक छोटी सी लकीर, देखो वो क्या कहती रही..

    वो कहती तुम अपनी हर चीज बदल सकते हो, हाथ खोलकर माथे की तकदीर बदल सकते हो, हाथ बांध कर तुम सारी तस्वीर बदल सकते हो, हाथ उठा कर जीवन की तदबीर बदल सकते हो, हाथ जोड़कर सपनों की जागीर बदल सकते हो, भाग्योदय होगा तुम्हारे कर्मों से, मगर तब होगा जब जागोगे तुम सपनों से, कितने वर्षों का जीवन है, कोई कहाँ पता कर सकता है, हां मगर वर्षों में कितना जीवन है, ये तुम खुद तय कर सकते हो..

    करो परिश्रम, करो पराक्रम, घर अपना बन जायेगा, गये नहीं विदेश तो क्या, तुम अपना देश तो बदल ही सकते हो, अपनी किस्मत के तुम खुद ही सारे आदेश बदल सकते हो, हाथ उठा कर करो प्रतिज्ञा, फिर एक कोशिश तो कर ही सकते हो..!!

    तो फिर रखिये अपने अपने हाथ अभी अपने दिल पर,

    अब मेरे साथ कोशिश तो तुम सब भी कर ही सकते हो..

    -अतुल अग्रवाल, काशीपुर

    9536269300






    अतुल अग्रवाल


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Namita Gupta - (25 July 2024) 5

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डा संगीता अग्रवाल - (24 July 2024) 5
प्रेरक, ग्राहय,विचारोत्तजक ,सुंदर उद्घोष👍🌷🙏

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Kapil Dev Agrawal - (24 July 2024) 5

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