हे जननी, हे अम्बे।
चरण शरण, मां जगदम्बे।
जयति तेरी,विजय तेरी।
मिटे शरण,घन अंधेरी।
नमन नमन,बाघम्बे।
तुझसे धर्म, तुझसे कर्म।
तूही गंगा यमुना कावेरी।
तू ही जल,तू ही जलाम्बे।
मर्दनी महीषा, शंभु निशुंभ।
जाने पहचाने, गुण तेरी।
सृष्टि तुझसे,तू ही सृष्टाम्बे।
जय मां दुर्गे
गिरधारी लाल चौहान व्याख्याता
सक्ती छत्तीसगढ़