कर्तव्यों का प्रश्न जहां है, वहां कभी आराम नहीं है।
इसीलिए इतने मानव हैं, लेकिन कोई राम नहीं है।
राम वही बन सकता है जो मर्यादित आचरण करे कोई।
धनुष बाण धारण करने से बनता कोई राम नहीं है।।
दशहरे के पर्व को मानने, अथवा इसे मनाने से पहले इस पर्व के मर्म को समझना होगा, रावण का जलाया जाना कोई जीवित पुरुष को जलाया जाना नहीं है, ये प्रतिवर्ष दहन हमारे उन अमर्यादित व्यवहारों और दुर्गुणों के संहार का सूचक है जिनके चलते मानव जीवन में अव्यवस्थाएं पनपने लगती हैं, आज सारे जगत में जब हमारे-आपके जीवन में रावण रूपी अवगुण जैसे हमारी इम्पल्सिवनेस, एन्गर, ग्रीड, एरोगेंस, जेलेसी, हेटरेड, अनहेल्दी कॉम्पटीशन, डेस्पेअर, डिसीसिवनेस, डेल्यूज़न और लेथार्जीनेस जैसे अवगुणों का बोलबाला है, इन्हीं सब क्रोध, अत्यारूढ़िता, ईर्ष्या, लोभ, विवशता, द्वेष, होड़, निराशा, संशय, मोह और आलस पर विजय प्राप्त करना ही सांकेतिक रावण दहन होगा, और फिर हमारे अन्तस में उससे उपजी क्षमा, शीलता, नम्रता, दयालुत्वम्, स्नेह, आशा, धैर्य, विवेक, निग्रह और विनिर्बन्ध जैसे मर्यादित गुणों से भरा मानव-मन इस जगत को इतना सुन्दर और लिवेबल बना लेगा कि फिर कहीं आपसी भेद-भाव और डिफरेंसेज को जगह ही नहीं मिलेगी..! हमारी मॉडेस्टी, इन्टीग्रिटी, काईन्डनेस, फॉरगिवनेस, पर्सिस्टेन्स, लव, होप, करेज़, विस्डम, और सेल्फ रेग्यूलेशन जैसे मर्यादित गुण ही हमारे भीतर बसे राम का प्रतीक हैं..!
हममें से हर व्यक्ति राम हो सकता है!
हमें शास्त्रीय विद्वत्ता अथवा चमत्कारिक शक्तियों के धनी होने की बजाए एक मर्यादित मानवीय जीवन का अभ्यासी होना है, हमारे कल्याण का बस यही एकमात्र रास्ता भी है..!!
आप सभी को मर्यादा की अमर्यादित जीवन पर विजय के इस अर्थपूर्ण पर्व विजयदशमी की हार्दिक बधाईयां व शुभकामनाएं..!
अतुल्या-टॉक्स..!