• 14 June 2025

    दोहा प्रतियोगिता -220

    doha pratiyogita -220

    0 9

    *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -220*

    *प्रदत्त शब्द - रचैया( रचनाकार)*

    *संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*

    आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

    मोबाइल -9893520965


    *प्राप्त प्रविष्ठियां :-*


    *1*

    नाच नचैया होत है,करता फिरता नाच।

    झूठ नहीं मैं बोलता, कहता बिलकुल सांच।।

    ***

    - डॉ. जगदीश रावत, छतरपुर

    *2*

    जगत रचैया राम हैं, बेई पालनहार।

    ब्रह्मा हरि हर रूप धर,फेर करत संघार।।

    ***

    -रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़

    *3*

    बड़े रचैया सृष्टि के, ब्रम्हा जू कैलात।

    पालत बिस्नू देव हैं,शिव रक्छा हितु आत।।

    ***

    -सुभाष सिंघई, जतारा

    *4*

    तुलसी सूर कबीर सो ,आज रचैया कौन।

    पूछीं धरती गगन से ,रही सृष्टि लौ मौन।।

    ***

    -बिंद्रावन राय सरल सागर

    *5*

    नये रचैया आजकल , लिख रचनायें रोज।

    बन रय रचनाकार हैं , लिख लिख रचना ओज।।

    ***

    -वीरेंद्र चंसौरिया,टीकमगढ़

    *6*

    रूप रंग सबको अलग, भिन्न कार-व्यौहार।

    ब्रह्म रचैया ने रचो,जो ऐसो संसार।।

    ***

    -अमर सिंह राय, नौगांव

    *7*

    राम रचैया विश्व के, रामइ पालनहार।

    नामजाप करता हमें, भवसागर से पार।।

    ***

    -डॉ. सुनील त्रिपाठी 'निराला' भिण्ड

    *8*

    रास रचैया लेव सुध, संकट में संसार।

    नाव फँसी मझधार में, तुमइँ लगा दो पार।।

    ***

    - विद्या चौहान, फरीदाबाद

    *9*


    जगत रचैया तुम बड़े, रिसा गये अब काय।

    जित देखौ तित मर रहे, निर्दोषी अब जाय।।

    ***

    -डॉ. रेणु श्रीवास्तव (भोपाल)

    *10*

    रचै रचैया रोज ही,,कृती एक सैं एक।

    कछू कुकर्मी होत रे, कछू होत हैं नेक।।

    ***

    -प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़

    *11*

    लख चौरासी यौनिके,बाद मिली ये देह ।

    बिम्मा जू ई खौं रचै,सुंदर है यह गेह ।।

    ***

    -शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा

    *12*

    जगत रचैया सैं बड़ौ, हो गव अब इंसान।

    माटी पथरा के बना , बेंचत है भगवान।।

    ***

    -आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर

    *13*

    जगत रचैया की कहौ, लीला कही न जाय।

    लिखो सबइ तगदीर में, कोउ बाँच नें पाय।।

    ***

    - डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा

    *14*

    बड़ो रचैया एक है, दुनिया में भगवान।

    बन्न - बन्न प्रानी रचे, सुघर रचो इंसान।।

    ***

    -श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासौदा

    *15*

    गाना जो रोजउॅं रचत, कतइ रचैया वाय।

    नौनी बुन्देली लगत,समझ सबइ खौं आय।।

    ***

    - रामसेवक पाठक"हरिकिंकर", ललितपुर

    *16*

    कौन रचैया विश्व कौ,को जग पालन हार।

    अलग अलग मत पंथ में,उल्झों है संसार।।

    ***

    -एस.आर.सरल,टीकमगढ़

    *17*

    राम रचैया जगत के,जगत राम के हाथ।

    जन-जन सुमिरत रात-दिन,जय-जय श्री रघुनाथ।।

    ***

    -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़

    *18*

    रास रचैया नंद कौ,लल्ला माखन चोर।

    चंचल चित्त चुराय कें, प्रेम प्रीत द‌इ टोर।।

    ***

    - भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"

    *19*

    वेद रचे हैं व्यास ने, कृष्ण रचाये रास।

    रन में गीता रच दई ,मिटी मोह की त्रास।।

    ***

    -प्रभा विश्वकर्मा 'शील',जबलपुर

    *20*

    रास रचैया नंद को,लाला नंदकिसोर।

    घर-घर मै चोरी करी,नटखट माखन चोर।।

    ***

    -तरुणा खरे'तनु' जबलपुर

    ***

    *21*

    ग्रंथ रचैया रच गये, अदभुत ग्रन्थ महान।

    जुगन जुगन सें हो रऔ, जिन सें जन कल्यान।।

    ***

    -रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां

    *22*

    हृदय होय करुणा कलित, पर में निज परतीत ।

    लिखै लेखनी लोक हित, रचै रचैया गीत ।।

    ***

    -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल

    *23*

    जौन रचैया रचि दियौ, सपनन कौ संसार।

    बसे सभइ में प्राण है, साँचो जस औतार॥

    ***

    -सुव्रत दे,सम्बलपुर

    ***

    *संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*

    आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

    मोबाइल -9893520965

    ##############



    राजीव नामदेव राना लिधौरी


Your Rating
blank-star-rating
Sorry ! No Reviews found!