*बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -220*
*प्रदत्त शब्द - रचैया( रचनाकार)*
*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
मोबाइल -9893520965
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
नाच नचैया होत है,करता फिरता नाच।
झूठ नहीं मैं बोलता, कहता बिलकुल सांच।।
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- डॉ. जगदीश रावत, छतरपुर
*2*
जगत रचैया राम हैं, बेई पालनहार।
ब्रह्मा हरि हर रूप धर,फेर करत संघार।।
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-रामगोपाल रैकवार, टीकमगढ़
*3*
बड़े रचैया सृष्टि के, ब्रम्हा जू कैलात।
पालत बिस्नू देव हैं,शिव रक्छा हितु आत।।
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-सुभाष सिंघई, जतारा
*4*
तुलसी सूर कबीर सो ,आज रचैया कौन।
पूछीं धरती गगन से ,रही सृष्टि लौ मौन।।
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-बिंद्रावन राय सरल सागर
*5*
नये रचैया आजकल , लिख रचनायें रोज।
बन रय रचनाकार हैं , लिख लिख रचना ओज।।
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-वीरेंद्र चंसौरिया,टीकमगढ़
*6*
रूप रंग सबको अलग, भिन्न कार-व्यौहार।
ब्रह्म रचैया ने रचो,जो ऐसो संसार।।
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-अमर सिंह राय, नौगांव
*7*
राम रचैया विश्व के, रामइ पालनहार।
नामजाप करता हमें, भवसागर से पार।।
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-डॉ. सुनील त्रिपाठी 'निराला' भिण्ड
*8*
रास रचैया लेव सुध, संकट में संसार।
नाव फँसी मझधार में, तुमइँ लगा दो पार।।
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- विद्या चौहान, फरीदाबाद
*9*
जगत रचैया तुम बड़े, रिसा गये अब काय।
जित देखौ तित मर रहे, निर्दोषी अब जाय।।
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-डॉ. रेणु श्रीवास्तव (भोपाल)
*10*
रचै रचैया रोज ही,,कृती एक सैं एक।
कछू कुकर्मी होत रे, कछू होत हैं नेक।।
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-प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़
*11*
लख चौरासी यौनिके,बाद मिली ये देह ।
बिम्मा जू ई खौं रचै,सुंदर है यह गेह ।।
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-शोभाराम दाँगी 'इंदु', नदनवारा
*12*
जगत रचैया सैं बड़ौ, हो गव अब इंसान।
माटी पथरा के बना , बेंचत है भगवान।।
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-आशाराम वर्मा 'नादान',पृथ्वीपुर
*13*
जगत रचैया की कहौ, लीला कही न जाय।
लिखो सबइ तगदीर में, कोउ बाँच नें पाय।।
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- डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा
*14*
बड़ो रचैया एक है, दुनिया में भगवान।
बन्न - बन्न प्रानी रचे, सुघर रचो इंसान।।
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-श्यामराव धर्मपुरीकर, गंजबासौदा
*15*
गाना जो रोजउॅं रचत, कतइ रचैया वाय।
नौनी बुन्देली लगत,समझ सबइ खौं आय।।
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- रामसेवक पाठक"हरिकिंकर", ललितपुर
*16*
कौन रचैया विश्व कौ,को जग पालन हार।
अलग अलग मत पंथ में,उल्झों है संसार।।
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-एस.आर.सरल,टीकमगढ़
*17*
राम रचैया जगत के,जगत राम के हाथ।
जन-जन सुमिरत रात-दिन,जय-जय श्री रघुनाथ।।
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-प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
*18*
रास रचैया नंद कौ,लल्ला माखन चोर।
चंचल चित्त चुराय कें, प्रेम प्रीत दइ टोर।।
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- भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
*19*
वेद रचे हैं व्यास ने, कृष्ण रचाये रास।
रन में गीता रच दई ,मिटी मोह की त्रास।।
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-प्रभा विश्वकर्मा 'शील',जबलपुर
*20*
रास रचैया नंद को,लाला नंदकिसोर।
घर-घर मै चोरी करी,नटखट माखन चोर।।
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-तरुणा खरे'तनु' जबलपुर
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*21*
ग्रंथ रचैया रच गये, अदभुत ग्रन्थ महान।
जुगन जुगन सें हो रऔ, जिन सें जन कल्यान।।
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-रामानन्द पाठक नन्द, नैगुवां
*22*
हृदय होय करुणा कलित, पर में निज परतीत ।
लिखै लेखनी लोक हित, रचै रचैया गीत ।।
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-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*23*
जौन रचैया रचि दियौ, सपनन कौ संसार।
बसे सभइ में प्राण है, साँचो जस औतार॥
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-सुव्रत दे,सम्बलपुर
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*संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
मोबाइल -9893520965
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