[28/06, 14:12] Aasharam Nadan Prathvipur: बुंदेली दोहा - रसा/सब्जी की तली
(१)
खाबे के हैं सोंकिया , लल्लू लंमरदार।
बिलिया भर पीबैं रसा , लेबैं जबइॅं डकार।।
(२)
लुचइॅं चार ठउ मींड़ कैं , सन्नाटे में खाॅंय।
डुकरा सब्जी कौ रसा , तीन बेर परसाॅंय।।
(३)
येक टमाटर दो भटा , आलू डारे चार।
घी जीरे सैं छौंक कैं , साग बनी रसदार।।
(४)
चटकीलौ होबै रसा , उर चटकीली नार।
रसा पेट औगुन करै , नार करै तकरार।।
(५)
रसा चटपटौ होय तौ , करै पेट खौं हान।
जादाॅं नइॅं खइयौ कभउॅं ,कैरय कवि नादान।।
आशाराम वर्मा " नादान "पृथ्वीपुर
(स्वरचित) 28/06/2025
[28/06, 14:13] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा-रसा (सब्जी का रस,शीरा)*
#राना सब्जी में रसा,हौबे भौत जरूर।
लगे स्वाद में चटपटौ,तरुआ में भरपूर।।
रसा अगर हर काम में ,#राना जब आ जाय।
मिलत सफलता सोइ है,जीत सदा दिखलाय।।
मेल जोल जादाँ दिखे,रसा रयै भरपूर।
नौनों सबरै कात हैं,मानत अमरत नूर।।
दुष्ट जहाँ पै हैं रहत,रसा दैय लुड़कायँ।
हड़िया भर पूरी कड़ी,पल में दे बगरायँ।।
#राना पंगत में रसा,सबरै करत पसंद।
दौना में भर लेत हैं,पात भौत आनंद।।
*** दिनांक - 28.6.2025
*✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
[28/06, 15:10] Amar Singh Rai Nowgang: *बुन्देली दोहे, विषय: रसा (शीरा)*
सूखी सब्जी बिन रसा, खात अगर बे-दाँत।
लरयाउत हैं देर तक, जौ लौ उठत न पाँत।।
मीड़- माड़ रोटी रसा, भरत पेट बिन स्वाद।
कटै बुढ़ापो कौन बिध,जतन करत ईजाद।।
सुनो बुढ़ापे की दशा, चलत रसा से काम।
बिना मुराए लीलतइ, भोर दुपरिया शाम।।
जोरो कटक उतेकई, जितनी क़ुब्बत होय।
पूजै नै सब्जी रसा, रोटी - पूड़ी कोय।।
नशा रसा दे ताड़ को, जो ताड़ी कहलाय।
दवा रूप में लेत जो, पाचन ठीक कराय।।
अगर रसा हो चटपटो, छुबा- छुबा कैं खात।
रोटी से पानू अधिक,बिना प्यास पिब जात।।
अमर सिंह राय
नौगांव
[28/06, 15:28] Subhash Singhai Jatara: 28.6.25- शनिवार विषय रसा (सब्जी का रस)
सब्जी साजी हो बनीं , गरम मसालेदार |
रसा लगै तब चटपटौ , भरै जीभ में लार ||
परसइ़या जब आत है , कात रसा दो डार |
लुचइँ मीड़ कै सूटनैं , मजा पड़े इस बार ||
परसइया पत्तल बिछा , दुनियाँ देबे डार |
रसादार सब्जी बनी , कातइ भौत बहार ||
रसा रयै हर काम में , मन में तब आनंद |
बरसत तब सबके हृदय , सुंदर- सुंदर छंद ||
अगर रिसानी बात हो , उतइँ रसा सड़ जात |
जैसें पथरीली जगाँ, अन्न नहीं उग पात ||
~~~~~~~~~~
[28/06, 15:38] Bhagwan Singh Lodhi Anuragi Rajpura Damoh: बुन्देली प्रतियोगी दोहा
विषय:-रसा
बूढ़े बब्बो खों रसा,जो कजंत मिल पाय।
लुचइ मीड़ कें पांत में,भीतर होत दिखाय।।
बड़ो भाइ रस कौ रसा, उर तिरकारी बेन।
कीमत ईकी है बड़ी, ज्यों स्याइ बिन पेन।।
तरी रसो सुरुआ कहें,जेठे स्यानें लोग।
टिक्कड़ उर तिरकाइ कौ,लगे हरि खों भोग।।
बिना रसा जीवन फसा, करौ राम रस पान।
रस की फूॅंकौ बाॅंसुरी,मिल जैहैं भगवान।।
लोभी मधुकर ले रसा, बिलखत तड़पत छोड़।
स्वारत पूरौ कर उड़ो, दुनियाॅं सें मुख मोड़।।
भगवान सिंह लोधी "अनुरागी"
[28/06, 15:38] Rama Nand Ji Pathak Negua: दोहा बुन्देली विषय रसा
1
मिर्च मसाले डार कें, पानू तनक मिलाय।
रसादार सब्जी बना, खूब सूँट कें खाय। ।
2
सूकी सब्जी बिन रसा, घुइँयन की बन जाय।
तातीं हों घी की लुचइँ, को नइँ खाय अघाय।।
3
स्वाद होत सबके अलग, सबके अलग प्रकार।
आलू घुइयाँ कौ रसा, हर घर का सरदार। ।
4
जिनके मुख में दाँत नइँ, रसादार बे चाँय।
रोटी सूकी साग सँग, कैसें नन्द मुराँय। ।
5
सूकी तींतीं सब्जियाँ, बनवा कें सब खात।
रसादार सैलात है, सूकी कम पर जात।
रामानन्द पाठक नन्द
[28/06, 16:09] +91 70003 22080: रसा
1रसादार सब्जी बनें, खूब मसालेदार!
स्वाद सहित सब खात हैं, पाते तृप्ती अपार!!
2सूखी सब्जी से भली, जो बनवे रसदार!
रोटी खबती दो अधिक, परसे कोऊ उदार!!
3रस की महिमा अधिक है, यही कहत सब कोय
बूढ़े सब्जी खात हैं, जो रस उत्तम होय!!
4रसा तभी रसमय बनें, जब रस भोजन होय!
वह जीवन नीरस बनें, जो रस देवे खोय!!
5रस का स्वागत सब करें, बूढ़े बारे ज्वान!
इसीलिये रखना सभी, रुचिकर भोजन पान!!
परम लाल तिवारी
खजुराहो
[28/06, 22:27] Taruna khare Jabalpur N: रसा,शब्द पर दोहे
रसा करेला को पियें,रोजइ एक गिलास।
बीमारी मधुमेह की,होबै जड़ सैं नास।।
सबजी सब मैंगी भईं,पुजा पुजा खैं खाव।
रसा बना लो साग को,पानी मुलक मिलाव।।
खुद तौ सूकी साग संग,खाबैं पूड़ी चार।
डुकरो खों देबैं रसा, पानी बारी दार।।
आलू की सबजी बनै,रसा मसालेदार।
भात संग मै खात सब,लेत खूब चटकार।।
तरुणा खरे'तनु'
जबलपुर
[28/06, 22:38] Rajeev Namdeo: *बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -222*
प्रदत्त शब्द - रसा (सब्जी का सीरा)
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
*प्राप्त प्रविष्ठियां :-*
*1*
रसा डार दो थार में,सब्जी बनीं कमाल।
आंगिनदा ऐसी बने,इको रखनें ख्याल।।
***
मूरत सिंह यादव, दतिया
*2*
रसा दार सबजी बिना, लगत अधूरौ भोज।
कैरय दददा कोउ सें,हम तौ खातइ रोज।।
***
वीरेंद्र चंसौरिया टीकमगढ़
*3*
जीमन चले बरातिया,बड़ो भओ अपमान
दार भरो रसयी रसा,जो केंसो सनमान।।
***
-डॉ रंजना शर्मा, भोपाल
*4*
पंगत में परसी हती,पूड़ी पूरी पांच।
रसा दार सब्जी मिली,चटनी,पापर, छांच।।
***
-प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़
*5*
हौय रसा-सी बात जब,सबकौ मन लग जात।
नाँतर भगबे आदमी , पारत भौत उलात।।
***
-सुभाष सिंघई , जतारा
*6*
रोटी जब खा पाउत हैं ,मींड़ मसक दो चार।
रसादार तिरकाइ हो ,कै पतरी सी दार।।
***
-आशाराम वर्मा 'नादान', पृथ्वीपुर
*7*
रोटी खारय नोन सें,हरपाऔर कमाल ll
मुर्गा पेलें हर दिना,चूसें रसा दलालll
***
- ब्रिंदावन राय सरल, सागर
*8*
फुलै लेत हैं रोटियां, देत रसा मै डार।
काकी हैं बिन दांत की, ऐंसो करत अहार।।
***
-तरुणा खरे'तनु',जबलपुर
*9*
मींड़ रसा में चार ठउ, बासी रोटीं खाव।
बज्जुर सौ तन खों करौ, वैद घरै ना जाव।।
***
- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निबाड़ी
*10*
बिना रसा होबै दशा, भरै न मन उर पेट।
छिलत मसूड़े दाँत बिन, स्वादउ मटियामेट।।
***
- अमर सिंह राय, नौगांव
*11*
रसादार तरकारियांँ, सबके मन को भायँ।
पाचन में अनुकूल हों, जामें कुटुम समाँय।।
***
-प्रभा विश्वकर्मा 'शील' जबलपुर
*12*
घी चुपरे फुलका मिलें,रसादार हो साग।
माई परसन हार हो, समझो खुल गय भाग
***
-आशा रिछारिया ( निवाड़ी)
*13*
तिरकारी कौ लो रसा, रोटी जितनी चाव।
दाँत अगर कमजोर हैं,गरा गरा कें खाव।।
***
-रामानन्द पाठक नन्द',नैगुवां
*14*
खा रय चुपरी रोटियाँ,फूले नईं समात।
संगै भरवाँ के भटा,रसा चाट कैं खात।।
***
-एस आर सरल, टीकमगढ़
*15*
तिरकारी को भव रसा,ऊमें रोटी सान ।
अफर पेट डिड़कत चलेँ,जोतन खेत किसान ।।
***
- प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़
*16*
लुचइ संग आलू बनैं,रसा दार जो होय ।
खाबै में नौनी लगै,खातइ जाबै सोय ।।
***
-शोभाराम दाँगी 'नंद', नदनवारा
*17*
रसना खों रस भौत हैं, रस में पगो जहान।
रसा राम के नाँव कौ, पीबें चतुर सुजान।।
***
- डॉ. देवदत्त द्विवेदी बड़ामलहरा
*18*
सबै मसाले पीस कें, मद्दी आँच पकाव,श।
रसौ बनै जो साग कौ,भर-भर पेटाँ खाव।।
***
-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
*19*
बसकारे कीं साग सैं, मजा रसा को आत।
बूढ़े दादा रोजई, मीड़- मीड़ कैं खात।।
***
-श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा
*20*
खा-पी कें तीखौ रसा,तीखे हो रय बोल।
मानों आयुर्वेद की,भुर्ता है अनमोल।।
***
-गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी
*संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़*
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
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[28/06, 22:41] Promod Mishra Just Baldevgarh: बुन्देली दोहा ,,विषय,,रसा ,, सब्जी का रस
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तिरकारी को भव रसा , ऊमें रोटी सान ।
अफर पेट डिड़कत चलेँ , जोतन खेत किसान ।।
रसवारी तिरकाइँ सेँ , भयौ रसा उत्पन्न ।
धनियाँ चीँखेँ नोन कम , जियरा होरव छन्न ।।
रसा धसा केँ पेट मेँ , भय"प्रमोद"बीमार ।
कच्ची सब्जी खाव तो , हुइये नही बिगार ।।
रसा टेँटुआ में फसा , ठसका खाँसी आइँ ।
असुआ आय "प्रमोद"के , सुन लो राम दुहाइँ ।।
रसा अगर स्वादिष्ट है , खुवै रोटियांँ ऐन ।
ननतर घर कन पै कड़ेँ , घरवारे के नैन ।।
रसा रामरस के बिना , नहीं लगे रसदार ।
यासेँ आज "प्रमोद"खुद , दैरय दार बघार ।।
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,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश ,,
,, स्वरचित मौलिक ,,,