• 12 July 2025

    बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -224

    Bundeli doha pratiyogita

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    बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -224वीं

    दि०१२-०७-२०२५

    *प्रदत्त विषय - लीसड़/लीचड़*

    *संयोजक- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*

    आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़


    *प्राप्त प्रविष्ठियां :-*


    *1*

    कर्मठ निज दुर्भाग्य की,काट देत हर फाँस।

    लीसड़ कोसत भाग्य खाँ,लै-लै कें हरसाँस।।

    ***

    -गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी

    *2*

    लीसड़ मिल गय बालमा, रात दिना वे सोंय।

    कैसें चलवै जिंदगी, सोच सोच हम रोंय।।

    ***

    - अंजनीकुमार चतुर्वेदी निबाड़ी

    *3*

    सरकारी सुबदा जिनें,मिलत मुफत में अन्न।

    बे सबरे लीसड़ भये,फिरत रात दिन टन्न।।

    ***

    -भगवान सिंह लोधी "अनुरागी''

    *4*

    कामचोर औ आलसी, नाकारा बेकार ।

    लीसड़़ काहिल आदमी, हैं धरती पै भार ।।

    ***

    -अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल


    *5*

    लीसड जन कौ काम पै, लरजै नई शरीर।

    सदा घोंनयानों रहै, भरकें पियै न नीर।।

    ***

    -रामानन्द पाठक ' नन्द,नैगुवां

    *6*

    काम करें हम काय खों,दे रइ सब सरकार।

    पड़े रहो लीसड़ बने,हो जे नैया पार।।

    ***

    -डॉ राजेश प्रखर,कटनी

    *7*

    तुम तौ लीसड़ भौत हो,बड़े निकम्मे यार ।

    घर खौं काय बिगार रय,जौ अपनौ परिवार ।।

    ***

    -शोभाराम दाँगी, नदनवारा

    *8*

    लीसड़ नेता होय तौ,करबै बंटाधार।।

    जनता लीसड़ होय सैं,घटिया रै सरकार।।

    ***

    -प्रदीप खरे'मंजुल' टीकमगढ़

    *9*

    लीसड़ बेई कात हैं, होय नै जिनपै काम।

    बिन मैनत सब चाउनै,करत रैत आराम।।

    ***

    -तरुणा खरे'तनु' ,जबलपुर


    *10*

    लीसड़ सुन बतकाव हम,अपनी मुड़ी खुजात।

    कनुआँ फूटी आँख खौं, काजर काय मँगात।।

    ***

    -सुभाष सिंघई , जतारा

    *11*

    सबरे लीसड़ ही लगत, गठबंधन के लोग।

    जो मौंसे आउत बकत,लरबे कौ है रोग।।

    ***

    -रामसेवक पाठकहरिकिंकर",ललितपुर

    *12*

    देखत में लीसड़ लगें ,लीसड़ इनकौ नाम।

    लीसड़ इनकी दोस्ती , लीसड़ सबरे काम।।

    ***

    - वीरेन्द्र चंसौरिया टीकमगढ़

    *13*

    रोज रोज कढुआ करें,नशा करें दिन रात।

    ऐंसे लीसड़ आदमी,कौनउँ नईं पुसात।।

    ***

    -प्रभा विश्वकर्मा 'शील' जबलपुर

    *14*

    लीसड़ पनपत कब इते, सोवै बो दिनरात।

    सबसैं राखे ईरसा, लड़त रात बिन बात।।

    ***

    - श्यामराव धर्मपुरीकर,(गंजबासौदा)

    *15*

    कलु ठलु मुलुआ हते , लीसड़ घिसना खूँब ।

    सुनत जात बै गय परोँ , गंगा जी मेँ डूँब ।।

    ***

    -प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़

    *16*

    कामचोर हो आदमी , लीसड़ होय लुगाइ।

    तकत पराई आस जे , जोर न पाबैं पाइ।।

    ***

    -आशाराम वर्मा " नादान " पृथ्वीपुर

    *17*

    ऐसे लीसड़ ना रहो,करो न मौटो चाम।

    वारे बिलखत भूंक सें, पिया करौ कछु काम।।

    ***

    -आशा रिछारिया जिला निवाड़ी

    *18*

    चौच दई तौ दें चुनन, फिकर करें श्री राम।

    लीसड़ बैठे झूँक रय, कत का करनें काम।।

    ***

    -एस आर सरल, टीकमगढ़

    *19*

    करत नौकरी आज सब,पढ़े लिखे हुशियार।

    लीसड़ खादी पैन कैं, कर रय बंटाधार।।

    ***

    - अमर सिंह राय ,नौगांव

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    *संयोजक राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'*

    आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़

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    राजीव नामदेव राना लिधौरी


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