हौसला चट्टानों से टकराने का हो तो,
दीवारों के सामने ना यूं फिर रोया करो,
आंसू यूं जाया न करो तुम सैलाब बनो,
नदी बनो, पहाड़ों को भी काट देती है,
बयार बन सहलाओ, पर हवा ही तो है,
जो अक्सर आंधी बन उड़ा भी देती है,
फूल ही तो है, पर ये कभी तुम न भूलो,
चट्टानों का सीना चीर खिलने का हुनर रखता है।