बच्चा गुलाम नहीं जिम्मेदारी है
वाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग आता है उस प्रसंग के अनुसार जब राजा दशरथ बूढ़े हो चले थे तो उनके मन में एक विचार आता है, कि मेरे बाद इस पूरी पृथ्वी का राज कौन भोगेगा ? वह अपने सलाहकारों को बुलाते हैं और उनसे कहते हैं कि वो संतानोत्पति के विषय में सोच रहे हैं, सलाहकार कहते हैं महाराज यह तो उत्तम विचार है आप कुल गुरुओं से आशीर्वाद लिजिए। कुल गुरु बुलाए जाते हैं कुल गुरु उनको यज्ञ करने की एक तिथि बताते हैं यज्ञ पूर्ण होता है उन्हें फल की प्राप्ति होती है, राजा दशरथ फल रानियों को देते हैं रानियां फल ग्रहण करती हैं और बेहद शुभ "ग्रह स्थिति" में चार राजकुमारों का जन्म होता है।
सोचकर देखिए एक व्यक्ति जिसके पास अपने बच्चों को देने के लिए पूरी पृथ्वी का साम्राज्य था तब उसने पहली बार संतान उत्पत्ति के बारे में सोचा, आज बच्चा अपने लिए एक अलग कमरे की मांग कर ले तो घर में महाभारत हो जाती है बच्चे की कहीं स्कूल ट्रिप जा रही हो तो उसके खर्चे के विषय में सोचकर माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं, वो उसे वहां जाने के नुकसान बताने लगते हैं जबकि शायद उन्हें यह बताना चाहिए कि वह आर्थिक रूप से इस स्थिति में नहीं की इतना खर्चा उठा सकें, कम से कम बच्चे के सामने वास्तविक चित्र को आयेगा मगर इस स्थिति में माता-पिता विलन बन जायेंगे और भगवान की उपाधि प्राप्त भारतीय माता-पिता ऐसा कभी नहीं चाहते।
पुनः रामायण के उस प्रसंग पर लौटते हैं आप देखिए कि जब राजा दशरथ के मन में संतानोत्पति का विचार आया, तब उन्होंने किन-किन महत्वपूर्ण लोगों से परामर्श लिया और किन-किन महत्वपूर्ण लोगों की आज्ञा का पालन किया वह भी तब जब वह राजा थे।
हस्तरेखा के शोध के दौरान में एक हल्द्वानी की प्रसिद्ध गायनेकोलॉजिस्ट मैडम से मिला और मैंने राजा दशरथ वाला प्रसंग बताते हुए पूछा "चलिए ज्योतिष को तो लोग अंधविश्वास समझते हैं लेकिन क्या हल्द्वानी के लोग संतानोत्पति से पहले आपसे मिलने आते हैं ?" उन्होंने हंसते हुए और थोड़े मायूस होते हुए कहा "कैसी बातें कर रहे हो यहां लोग तब आते हैं जब समस्याएं बहुत गंभीर हो जाती हैं।" मैंने उनसे कहा लेकिन लोगों को शायद संतानोत्पति से पहले आना चाहिए, ताकि उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति का पता चल जाए और आगे वो उसी हिसाब से योजना बना सकें।
अब उन्होंने हंसते हुए कहा "होना तो बहुत कुछ चाहिए।"
उपरोक्त प्रसंग में आप पायेंगे की राजा दशरथ के संतानोत्पति का प्रमुख कारण परमार्थ था क्योंकि उनके पास अपनी संतान को देने के लिए काफी कुछ था, लेकिन वर्तमान समय में ज्यादातर संतानोत्पति का कारण स्वार्थ होता है कि हमारे बुढ़ापे में हमारी देखभाल कौन बनेगा ? हमें बुढ़ापे में सहारा कौन देगा ? हमारा वंश कैसे आगे बढ़ेगा ? , युवाओं को भी यही सब बातें बोलकर शादी के लिए प्रेरित किया जाता है तो उन्हें भी लगता है संतान का यही तो काम है, मैं मानता हूं ये चीजें भी गलत नहीं लेकिन आगे चलकर यही सब बातें बेड़ियों का काम करती हैं, कई बार बच्चों को श्रवण कुमार की कहानी इतनी बार सुना दी जाती है कि उसके बाद वो सब बातें उनके लिए मानसिक बोझ बन जाती हैं।
अंत में बस इतना कहना चाहूंगा कि राजा दशरथ की तरह सलाह लेने के लिए आपके पास अधिक लोग चाहे ना हों, आपको ज्योतिष में विश्वास चाहे ना हो, लेकिन जो गायनेकोलॉजिस्ट आपको ऑपरेट करेगी या अन्य किसी गायनेकोलॉजिस्ट से मिलकर संतानोत्पति से पूर्व उनसे बातचीत जरूर कर लें।
राजा दशरथ की तरह आप अपनी संतान को पूरी पृथ्वी का राज्य तो नहीं दे सकते लेकिन जब आपकी आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक हो तभी इस दिशा में आगे बढ़ें, क्योंकि भले ही आपको मजाक लगे लेकिन इसके बाद वर्तमान खर्चों के साथ डाइपर, प्ले स्कूल, स्कूल, एक्टिविटी क्लासेस, एकेडमी क्लासेज आपका इंतजार कर रही होंगी।
अब बच्चों को पालना पहले के जैसा आसान नहीं रहा, पहले तो बच्चों के द्वारा की गई ख्वाहिशों का जवाब ज्यादातर उन्हें डांट या थप्पड़ के रूप में मिलता था (जो अच्छी परवरिश शायद नहीं थी।) लेकिन आजकल फूल से नाजुक होते हैं और डांट भर देने पर बच्चे गलत कदम उठा लेते हैं या अवसाद में चले जाते हैं।
माता-पिता को हमेशा याद रखना चाहिए संतान को जन्म देना आपकी (आपके परिजनों की) ख्वाहिश थी संतान ने आपको पैदा करने के लिए प्रार्थना पत्र नहीं दिया था, इसलिए बच्चे आपके गुलाम नहीं हैं बल्कि बच्चे आपकी जिम्मेदारी हैं उन्हें अपने मोह (जिसे आप प्रेम समझते हैं) का शिकार मत बनाइए बल्कि उन्हें चलने दीजिए, गिरने दीजिए, सहारा दीजिए, दौड़ने दीजिए, उड़ने दीजिए।