कालपुरुष कुंडली, लाल किताब और ज्योतिष के वन लाइनर
वैसे तो यह अपने आप में बहुत बड़ा विषय है इतना बड़ा की तीनों पर एक एक किताब लिखी जा सकती है, लिखी जा क्या सकती है इस समय बाजार में इन तीन विषयों पर दर्जनों किताबें उपलब्ध हैं।
इस लेख में हम इन तीनों विषयों को जोड़ते हुए एक लेख में समेटने की कोशिश करेंगे, कालपुरुष कुंडली एक ऐसी कुंडली है जो ज्योतिष में एक मानक या आधार कुंडली के रूप में इस्तेमाल होती है, यानी प्रथम भाव में पहली राशि दूसरे भाव में दूसरी और इसी तरह बारहवें भाव में बारहवीं राशि लिखकर हम कालपुरुष की कुंडली बना सकते हैं।
प्रश्न यह आता है कि इसका प्रयोग किस तरह से किया जाए तो इसे समझने का बेहद सरल सा तरीका है आप ग्रह की उच्च, नीच और स्वग्रही राशियां ज्ञात किए षडाष्टक (6-8 का संबंध) योग को समझिए और सूत्र प्रयोग में लाइए।
उदाहरण के तौर छः, आठ, बारहवें भाव में बैठे ग्रह अच्छे नहीं माने जाते लेकिन छठे भाव में बैठा बुध, आठवें भाव में मंगल, बारहवें भाव में बैठा गुरु/शुक्र अच्छे फल देंगे, क्योंकि कालपुरुष के अनुसार छठे भाव में कन्या राशि होगी वहां बुध स्वग्रही/उच्च हो जायेंगे, आठवें भाव में कालपुरुष के अनुसार वृश्चिक राशि होगी वहां मंगल स्वग्रही हो जायेंगे, कालपुरुष के अनुसार बारहवें भाव में शुक्र उच्च के और बृहस्पति स्वग्रही हो जायेंगे।
एक दूसरे उदाहरण के आधार पर इसे समझें तो जैसा कि कहा जाता है केन्द्र में बृहस्पति अच्छे फल देता है लेकिन दशम भाव में बृहस्पति होने पर कालपुरुष के अनुसार बृहस्पति अपनी नीच राशि में चले जाते हैं, इस भाव में केंद्र स्थान में होने के बावजूद तुलनात्मक रूप से बृहस्पति उतने अच्छे फल नहीं देते, कुछ एक मामलों में जब सप्तम और सप्तमेश भी अच्छी स्थिति में नहीं था और बृहस्पति दशम भाव में थे तो मैंने जातक का तलाक होते हुए भी देखा है, हालाकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि तलाक दो लोगों के मध्य होता है इसलिए इसका निर्णय भी दोनों की कुंडली देखकर करना चाहिए।
तीसरे उदाहरण में पहले भाव में शनि कालपुरुष के अनुसार अपनी नीच राशि में होने के कारण अच्छे फल नहीं देगा फिर चाहे वो मकर/कुंभ/तुला राशि में भी क्यों ना हो मकर/कुंभ में शनि स्वग्रही और तुला में शनि उच्च का होता है। इसी तरह सप्तम भाव में सूर्य, अष्टम भाव में चंद्रमा, चतुर्थ भाव में मंगल, बारहवें भाव में बुध, दशम भाव में बृहस्पति (दूसरा उदाहरण) छठे भाव में शुक्र अच्छे फल नहीं देंगे क्योंकि इन सभी भाव में कालपुरुष के अनुसार यह ग्रह अपनी नीच राशि में आ जायेंगे।
ठीक इसी तरह षडाष्टक (6-8 का संबंध) योग भी समझना होगा जैसे काल पुरुष के अनुसार प्रथम भाव मेष राशि होगी तो छठे आठवें भाव में मंगल अच्छे फल नहीं देगा, हालाकि आठवां भाव भी मंगल का ही होता है तो इस मामले में यह नियम पूरी तरह से काम नहीं करेगा, दूसरे भाव का स्वामी शुक्र होगा इस स्थिति में अपने से छठे-आठवें में बैठा शुक्र यानी सप्तम और नवम भाव में बैठेगा शुक्र सप्तम भाव में स्वग्रही होता है तो यहां भी शुक्र के शुभ फल प्राप्त होंगे मगर नवम भाव में बैठा शुक्र अच्छे फल नहीं देगा, इसी को थोड़ा और विस्तार से समझें तो अगर नवम भाव में वृष/तुला/मीन राशि भी होगी और शुक्र स्वग्रही/स्वग्रही/उच्च भी होगा तो भी नवम भाव में शुक्र स्वग्रही और उच्च जैसे फल नहीं देगा वहीं दूसरी तरह अगर बारहवें भाव में कन्या राशि का शुक्र भी होगा (जो कि उसकी नीच राशि है) तो भी तुलनात्मक रूप से अच्छे फल देगा क्योंकि कालपुरुष के अनुसार बारहवें भाव में शुक्र अपनी उच्च राशि (मीन) में पहुंच जायेगा।
मुझे उम्मीद है आप कालपुरुष कुंडली को समझ चुके होंगे आगे और बेहतर तरीके से समझने के लिए आप ग्रहों की उच्च, नीच और स्वग्रही राशियां और षडाष्टक योग कंठस्थ कीजिए एवं नियमित रूप से अभ्यास कीजिए।
अब हम इस लेख के दूसरे विषय लाल किताब पर आते हैं दरअसल लाल किताब को रहस्यमई किताब की तरह प्रचारित किया गया, लेकिन अगर आप उसके बुनियादी ढांचे को समझेंगे तो आप पायेंगे कि उसके फलादेश का आधार कालपुरुष की कुंडली ही है यानी पहले भाव में शनि अच्छे फल नहीं देगा, इसी तरह सप्तम भाव में सूर्य, अष्टम भाव में चंद्रमा, चतुर्थ भाव में मंगल, बारहवें भाव में बुध, दशम भाव में बृहस्पति, छठे भाव में शुक्र अच्छे फल नहीं देंगे इसका कारण मैं ऊपर आपको बता ही चुका हूं, आप चाहें तो बिना इस लेख के बारे में बताए किसी लाल किताब के जानकर से इस विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, इस लेख के बारे में बताने पर शायद आपको स्पष्ट जानकारी ना प्राप्त हो कारण मैं आपको बता चुका हूं "लाल किताब को रहस्यमई किताब की तरह प्रचारित किया गया…" और कोई जादूगर नहीं चाहता उसकी ट्रिक या उसका पैंतरा दुनिया को पता लगे।
लाल किताब के उपायों की बात करें तो उन्हें भी बेहद रहस्यमई तरह प्रचारित किया गया, यानी अगर आप ग्रहों के कारक कंठस्थ कर लेंगे तो उसके उपायों को भी बड़ी आसानी से डिकोड कर सकते हैं, अगर हम यह समझें कि लाल किताब में उपाय किस तरह बताए जाते हैं तो उसके लिए आप बस इतना जान लीजिए जो भी ग्रह अपनी नीच राशि में होगा या शत्रु राशि में होगा उसके या कोई ग्रह उच्च राशि में होगा तो उसके उपाय बताए जायेंगे।
सूर्य प्रथम भाव में उच्च सप्तम में नीच होगा, चंद्रमा द्वितीय भाव में उच्च अष्टम भाव में नीच होगा, बुध छठे भाव में उच्च/स्वग्रही और बारहवें भाव में नीच होगा और इसी तरह आगे भी क्रम चलता रहेगा, आप जितनी जल्दी ग्रहों की उच्च/नीच राशि ग्रहों के मित्र-शत्रु ग्रह कंठस्थ कर लेंगे उतनी जल्दी आप लाल किताब के रहस्यों को समझने लगेंगे।
हालाकि मैं इस बार से इंकार नहीं करता यह लाल किताब को सीखने की शुरुआत भर है, अगर आप लाल किताब को बेहतर तरीके से सीखना चाहते हैं तो एक लंबी यात्रा आपका इंतजार कर रही है जिसके लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं।
लेख के तीसरे और अंतिम विषय पर बात करें तो जब आप कालपुरुष की कुंडली यानी एक तरह से लाल किताब ढंग से सीख जायेंगे, तो आप किसी की कुंडली में सप्तम भाव में बैठे सूर्य (जो कालपुरुष के अनुसार अपनी नीच राशि में होगा) को देखकर सीधे कहने लगेंगे "सप्तम भाव में बैठा सूर्य वैवाहिक जीवन में समस्या देता है पार्टनशिप में हानि होती है नियमित सूर्य को जल चढ़ाएं माणिक धारण करें लाभ होगा…" लेकिन रुकिए रुकिए अपनी गाड़ी में ब्रेक लगाइए यही तो आपको नहीं करना है।
क्या आप एक ग्रह को देखकर फलादेश करने वाले "वन लाइनर एस्ट्रोलॉजर" बनना चाहते हैं ? नहीं बनना चाहते ना ? तो फिर गंभीरता से जातक की लग्न कुंडली देखिए, चंद्र कुंडली देखिए, चलित कुंडली देखिए, नवमांश कुंडली देखिए, संभव हो तो षोडश वर्ग का अध्ययन कीजिए, फिर अपने इष्ट का नाम लेकर ऐसा फलादेश कीजिए कि जातक की समस्या का समाधान भी हो जाए और उसे पता भी ना चले कि कोई समस्या थी।
जिस तरह मैंने सूर्य का सप्तम भाव में फल बताया उसी तरह बारह भावों में सूर्य के फल और बाकी ग्रहों के बारह भावों में फल बताए जा सकते हैं और बड़ी आसानी से एक किताब लिखी जा सकती है, लेकिन मेरा मानना है जब एक लेख में किताब को समेटा जा सकता है तो क्यों सैकड़ों पेज खर्च करने उम्मीद करता हूं आपको यह लेख पसंद आया होगा आप आप "क्यों सैकड़ों पेज खर्च करने" वाली बात से सहमत होंगे।