• 10 May 2025

    आलेख

    माँ – ममता की अटूट छाया

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    माँ – ममता की अटूट छाया

    माँ... एक शब्द नहीं, संपूर्ण सृष्टि की आत्मा है। जब हम ‘माँ’ कहते हैं, तो केवल किसी स्त्री की पहचान नहीं लेते, बल्कि उस आदिशक्ति का स्मरण करते हैं जो सृजन की प्रेरणा है, त्याग की मूर्ति है और प्रेम की पराकाष्ठा है। माँ केवल जन्म देने वाली नहीं होती, वह जीवन गढ़ने वाली होती है।

    शिशु जब इस संसार में आता है, तो सबसे पहले माँ की गोद उसका पहला संसार बनती है। उसकी मुस्कान में माँ का आशीर्वाद होता है, उसकी पहली भाषा माँ की बोली होती है, और उसकी पहली पाठशाला माँ की बाहें होती हैं। माँ बिना कहे समझ जाती है कि संतान की आँखें क्या कह रही हैं, उसका चेहरा क्या छुपा रहा है।

    माँ की ममता में कोई शर्त नहीं होती। वह संतान की हर भूल को अपने आँचल में ढँक लेती है और हर चोट को अपने स्नेह से सहला देती है। उसका त्याग कभी बोला नहीं जाता, लेकिन हर कोने में महसूस किया जा सकता है — कभी अधपकी रोटी में, कभी रात भर जागने में, तो कभी चुपचाप बहते आँसुओं में।

    आज जब दुनिया तकनीक की ओर भाग रही है, जब रिश्ते भी औपचारिक होते जा रहे हैं — माँ वही है, जो बिना सोशल मीडिया पर स्टेटस डाले हर रोज़ आपके लिए दुआ माँगती है। वो आपके पीछे खड़ी वह ताक़त है, जो चाहती है कि आप ऊँचाइयाँ छुएँ, लेकिन कभी इस डर से कुछ न कह पाए कि कहीं आप परेशान न हो जाएँ।

    माँ कोई पद नहीं, एक अनुभूति है। वह हर धर्म, हर जाति, हर समाज में एक जैसी होती है — निश्छल, निस्वार्थ और निष्ठावान। उसके लिए कोई पुरस्कार नहीं होता, लेकिन हर संतान की मुस्कान उसका सबसे बड़ा सम्मान होता है।

    माँ की परिभाषा शब्दों में नहीं, उसकी नज़रों में पढ़ी जाती है। वह हर समय आपके साथ होती है – चाहे सशरीर हो या स्मृति बनकर। माँ, जो हर शाम आपके लौटने की राह देखती है, और हर सुबह आपके भविष्य के लिए ईश्वर से विनती करती है।

    “माँ होना कोई भूमिका नहीं, वह एक जीवन दर्शन है, जो सम्पूर्ण जगत को अपनी ममता की छाया में समेट लेती है।”

    स्वतंत्र लेखिका एवम् साहित्यकार
    शिखा गोस्वामी निहारिका
    मारो, मुंगेली, छत्तीसगढ़



    शिखा गोस्वामी


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