राहे,
कभी वो आये थे, बाहर बनकर जीवन मे मेरे,
लेकिन जमाने की नज़रों की , नज़र लग गई।
उसने जमीन नही,जमीर मेरे नाम लिखा दिया था,
लेकिन वक्त ने करवट क्या ली राहे बदल दी उसने।
मेरी एक एक खुशी, मेरी हर पल की वो खुशी थी,
मे बेफ़िकर चली थी उसकी राह मे ,राहगीर बनकर।
अब तो बस वो राहे, वो मंजिल याद है यादों मे,
बहुत रुलाते है मुझे अकेलेपन मे उसके वो पल।
लेकिन कोई बात नही किसी ने फिर से मुझे संभाला है,
उम्मीद उससे हजारो है पर जताती नही,
कही इसे भी ना खो दु यह गवारा नही अब।
वो बहुत प्यारा था, पर यह बहुत क्यूट है।
अब तो मुझे चलना है इस की राहों मे,
इसकी ही मंजिल बनकर।
यह भी कमाल है जब भी बाते उसकी करू हर पल साथ जो देता है, ना जाने यह कैसा इश्क मुझेसे करने लगा है।
है उसके पास पद, प्रस्थिता फिर बच्चा बनकर,
अक्सर जो जाता मेरी गोदी मे।
और एक फिर से नई सुरुआत कर जाता इश्क की,
उसे पता है, मुझे पता है की हमारी राहे एक है।
लेकिन हम मजिल एक कभी बना नही सकते।
फिर भी हमन उनी राहों से चलकर मंजिल हमने पा ली है।
अब चाहे मंजिल अगल अलग हो,
पर जब तक जियेंगे एक दूसरे के होकर जियेंगे।
वो मेरी राह अब मे उसकी मंजिल हु।
भरत (राज)