किसी नजर ने, नज़ाकत भरी नजरो से,
नज़दीक आकर छुराया, अपनो की नजरो से।
हमने भी उस नजर को, नजराने की तरह,
बैठा लिया अपने दिल में पलको की तरह।
हल्की-हल्की बदली नजरो की नजाकत जो,
बादल बनकर बरस पड़े आंखों से आंसू जो।
अब कहा नजरो का मिलना रोज होता है,
सिर्फ नजरभर देख लूं,वो इंतजार रोज होता।
वो जो हमेशा घूमते थे नजरो के सामने,
आज कल किसी और की नजर बन बैठे है।
शायद ‘राज’ रूठ चुका तेरा इश्क उसकी नजर में,
फिर भी तू मिला ले नजरो से नजर उसके इश्क में।
भरत (राज)