एक सुबह थी ,जब हम मिले थे,
सिर्फ नजर ने नजर से मुलाकात की थी।
चुपके चुपके देखा करते हम,
लेकिन मुलाकातों से डरते थे।
धीरे धीरे अहसास बढ़ रहे थे,
में उसका और वो मेरी हो रही थी।
वो वक्त भी आया गिरफ्त में हमारे,
जब हम गिरफ्तार हुए इश्क की झंझिरो में।
खुश बहुत थे हम दोनो पाकर एक दूजे को,
पर ना जाने वक्त को मंजूर कुछ और ही था।
जी नहीं सकते थे एक दूजे बिना हरपल,
शायद इसलिए जमाने की नजर लग गई।
आज भी पवित्र प्रेम है हमारा एक दूजे उसके लिए,
पर नहीं मिल सके है हम कई सालो से।
भरत ( राज)