साथ–साथ चलते थे हम,
तब कहा समय का भान था।
जब से बिछड़े हो दोस्त ,
तब से पल–पल ,
भारी सा लगता है।
वो सुबह का जल्दी उठकर ,
एक दूसरे को जगाना,
साथ साथ स्कूल को जाना,
समय के साथ साथ घर को आना।
अब तो दोस्त पता नही तू कहा है,
नई तेरी कोई चिट्ठी ना ही कोई प्रोफाइल है,
ना ही तेरी कोई खबर है,
धीरे धीरे अब लगता है ,
समय ही खिलाफ है अब हमारे।
सुन तू जहा भी है मुझे ठूंठ ले,
में भी चलकर समय के खिलाफ,
बेहिसाब अब खोजता हु तुझे,
काश हम फिर एक बार मिल जाए।
स्कूल की दीवार पर बैठकर,
फिर एक बार एक दूसरे को धक्का दे पाए,
फिर वही मस्ती भरा दौर आ जाए,
भले ही चलना पढ़े समय के खिलाफ ,
बस तू एक बार यारा फिर से लौटकर आजा।
भरत (राज)????