• 05 April 2021

    डायरी के पन्नों से

    खिलौने

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    आँखों से जाने वाला रास्ता मन की किसी भी गली तक पहुँच सकता.है, मस्तिष्क के किसी भी छोर तक जा सकता है...बेपरवाह..मस्तमौला..न इसे समय की फिक्र होती है न उम्र का लिहाज़..

    अचानक कोई चीज देखता है और निकल पडता है,यादों के सफ़र में,सपनों के शहर में...!

    आज ही की बात है, एमेजॉन पर कुछ सर्च करते हुए यह दिख गया और जैसे समय रुक गया !


    इतने सुंदर खिलौने! रसोई के छोटे छोटे, प्यारे-प्यारे बरतन.. और मुझे याद आ गया मेरा बचपन, वह आँगन.. आई का मेरे लिए बनाया हुआ घरकुल...ईंट फर्सी से बने, गोबर से लीपे हुए दो कमरे ..मेरी गुड़िया के लिये!

    घर के आगे आँगन जहाँ छोटे-छोटे करवों और दियों में हमने गेहूँ बोए थे..एक एक कोंपल को फूटते देखा था ..कितना रोमांचक!


    90's के समय "मॉल्स" नही होते थे, होते थे तो वर्ष में एक या दोन बार लगने वाले मेले..! मेले क्या? सपनों की दुनिया ही कह लो उसे या नानीजी की कथाओं वाला परी लोक जहाँ ऊँचे- ऊँँचे झूलों में बैठ हम आकाश छू लिया करते थे.. दूरबीन से तारे देखते थे.. जादू के खेल हमारा मन बहलाते थे..बुढ्ढी के बाल, मटके वाली कुल्फी और चाट..खिलौने की दुकानें तो जैसे जन्नत का मजा देती थी.. तो उसी मीना बाजार से मेरी गुडिया की रसोई के लिये खास एक 'किचन सेट' लाया गया था।

    फेवीकोल से चिपके छोटे -छोटे बर्तन.. कढ़ाई, चकला-बेलन, गैस का चूल्हा, चाय की केतली.. कड़छी..परात..तवा..और न जाने क्या क्या....


    और उन बर्तनों में हम उस जमाने में "फायरलैस कुकिंग" करते थे.. बड़ी चपाती को ढक्कन से काट कर छोटी चपातियाँ बना लेते थे.. खाने की मुख्य सामग्री में शामिल थे मूँगफली के दाने, पोहे, परमल, गुड़-शक्कर, सौंफ और पारले जी के बिस्किट..जिन्हे पीस कर, गला कर..न जाने क्या पकवान बनाए जाते थे ..और मेरे नानाजी और दादाजी होते थे हमारे खास मेहमान..जिन्हें ये सब खाना पड़ता था, तारीफों के साथ..!!


    मेरे बाबा ग्वालियर के मेले से एक छोटा -सा चाय का सेट लाए थे, चीनी मिट्टी का!! बेहद करीने से बना प्लायवुड का फर्नीचर भी था, एक छोटा-सा पलंग, कुर्सी-टेबल, अलमारी.. और हाँ एक ड्रेसिंग टेबल भी!! सभी चीजें एक हथेली पर समा जाए ..बस इतनी छोटी..लेकिन बहुत आकर्षक!!

    मुझे याद है , मेरी दादी अपनी मशीन पर मेरे कपड़े सिला करती थी, और यह मेरी जिद होती थी कि बचे हुए टुकड़ों से ठीक मेरे ही जैसी फ्रॉक मेरी गुड़िया की भी बने।

    आसपास के सारे बच्चे अपने अपने गुड्डे गुड़ियों के साथ घंटों खेला करते थे... बेफिक्र.. बेपरवाह!


    हम ही "घर-घर" नामक इस खेल की स्क्रिप्ट लिखते थे, डॉयलॉग लिखते थे, कौन मम्मी कौन पापा बनेगा? कौन टीचर और कौन सब्जीवाला बनेगा...! गुडिया के जन्मदिवस से लेकर तो शादी तक सब हमारी ही जिम्मेदारी थी..! घंटों हम अपने- अपने रोल्स बडी शिद्दत के साथ अदा करते थे.. लड़के "ऑफिस" जाने के बहाने थोड़ी देर क्रिकेट भी खेल लिया करते थे..


    सब झूठ-मूठ में था, सच्ची केवल एक बात थी, "बच्चों का बचपन और उनकी मासूमियत"

    उस समय हम आजकल के बच्चों की तरह स्मार्ट नही थे.. बहुत जल्दी किसी भी बात को मान जाते थे,.. और इसीलिए हमारा बचपन "चिंता रहित" था.... इत्ती- सी हसीं और इत्ती -सी खुशी में खुश होने वाला हमारा बचपन!


    सब कुछ था पर आज की तरह फोन नही था, फोटो लेने के लिए.. वीड़ियो बनाने के लिये..

    ये सब यादें ज़हन में हैं बस..दिल और दिमाग के किसी कोने में सहेज कर रखी है.. थोड़ी धुंधला गई हैं...

    फोन होता तो उसकी गैलरी में सहेज कर रखती, ज्यों की त्यों।

    फिर सोचती हूँ...फोन होता तो यह सब कहाँ होता?? न घरकुल होता, न गुड़िया होती..

    न इतना समय होता न मासुमियत होती..

    खो जाते हम भी उस झूठी आभासी दुनिया में..

    जहाँ सबकुछ मिलता बस फुरसत न मिलती!


    इस कॉलम के जरिये आप सभी से एक गुज़ारिश करना चाहूंगी, कि जहाँ तक हो सके अपने बच्चों को कृत्रिमता से दूर रखिये... उनकी मासूमियत बनी रहे, ऐसा माहौल देने की एक ईमानदार कोशिश कीजिये...


    मिलती हूँ अगले सोमवार....


    ©ऋचा दीपक कर्पे








    ऋचा दीपक कर्पे


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Kavita Joshi - (11 April 2021) 5

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Jhanvi Gor - (09 April 2021) 5

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स्वाती दांडेकर - (08 April 2021) 5
सुजीव प्रस्तुती करण.थोड्या वेळा साठी का होईना पुन्हा लहानपण जगले.

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Seema Puranik - (06 April 2021) 5
😍😍👌 तुझं घरकुल आम्ही पण पाहिलं आहे आणि तुझ्या हातचं जेवले पण आहे ,सुंदर ,सजीव चित्रण

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Kavita. Dindulkar - (06 April 2021) 5
chan pura bachpan samne rakh diya

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Madan Patwardhan - (06 April 2021) 4
बाल मनाचे सुंदर आणि सटीक वर्णन । सर्व गोष्टी प्रत्येका च्या मना ला व्यवस्थित पट तील, जणू स्वतः चेच जुने दिवस आठवू लागले, अश्या पद्धति ची मांडणी केली आहे। ही कला तुम्हाला उपजतच आहे, अभिनंदन।

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उज्वला कर्पे - (06 April 2021) 5

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