• 01 January 1970




Shri Kaviraj - (29 May 2021) 5
बहोत सरस लिखे छू . ऋचाजी एकदम सही विचार रखे है👌👌

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Smita Ved Pathak - (06 May 2021) 5

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Deepak Karpe - (05 May 2021) 5
"जिसकी मित्रता किताबों से हो उसे अन्य किसी मित्र की आवश्यकता नहीं होती।"यह अतिश्योक्ति भी हो सकती है ,लेकिन आज वर्तमान में यह उक्ति कितनी सार्थक सिद्ध हो रही है। बचपन मे पढ़ी चंदामामा, नंदन,चम्पक सहित कई बाल पत्रिका,तदनंतर प्रेमचंद साहित्य तथा अन्य उपन्यास ,कहानी संग्रह (हिंदी,मराठी) पढ़े।आज भी पढ़ना निरंतर जारी है। सचमुच पुस्तकों से ज्ञान,मनोरंजन और सीख सभी मिलता है। वाकई वे हमारी सच्ची मित्र है। अच्छा रोचक और मनपसंद आलेख लिखने के लिए ऋचा बधाई और धन्यवाद।

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Vrushali Apte - (04 May 2021) 5
वाक़ई कितनी कल्पना शील दुनिया थी।

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उज्वला कर्पे - (04 May 2021) 5
वैसे भी कहा जाता है कि किताब मनुष्य की मित्र होती है।

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Ameya Padmakar Kasture - (04 May 2021) 5
Superb 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

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