मेरा शहर मेरा तीर्थ
नमस्ते मित्रो,
एक बार मेरा मन बहुत उदास था क्यूंकी मेरे परिचित लोग तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे। उन्होने मुझसे भी चलने को कहा। मुझे भी तीर्थ यात्रा करने की इच्छा हो रही थी पर अपने पैरो के कारण मे कही दूर जा पाने मे असमर्थ थी। मुझे उदास देखकर मेरे भाई ने उदासी का कारण पूछा, तब मैंने उसे मेरे मन की बात बताई। इस पर भाई ने कहा उदास क्यो होती हो, अपने शहर के आसपास ही इतने धार्मिक दर्शनीय स्थल है जिनको देखकर तुम्हें तीर्थ करने का अहसास होगा। बस फिर क्या था आने वाले रविवार को घर के सामने गाड़ी आकर खड़ी हो गयी और हम निकल पड़े अपनी यात्रा पर। हमने जिन स्थानो का भ्रमण किया वे इस प्रकार है -
हँडिया - हरदा जिला प्रधान कार्यालय से 21 कि मी उत्तर की तरफ अतिप्राचीन क्षेत्र हँडिया है। नर्मदा नदी का मध्य बिन्दु होने के कारण नर्मदा परिक्रमा करने वाले भक्त यही से अपनी यात्रा प्रारम्भ करते है। इतिहासकर बताते है कि यही पर ऋषि जमदग्नि व सहस्त्रार्जुन इनकी भेट हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि बल्क के सम्राट नाजीरुद्दीन हँडिया आए व फकीर के रूप मे यही स्थापित होकर हँडिया शाह भड़ंग के रूप मे जाने गए। मांडू के सुल्तान हुशंगशाह गोरी इन्होने यहा एक किला बनाया था। अठारहवि शताब्दी मे मराठा शासन काल मे राजधानी हँडिया से हरदा मे बदली हो गयी। अभी इस क्षेत्र का संरक्षण, संवर्धन और सुशोभिकरण का काम पुरातत्व विभाग व जिला प्रशासन कर रहा है। हँडिया का रिद्धनाथ मंदिर व नेमावर का सिद्धनाथ मंदिर अपने कलात्मक सौंदर्य व वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि ये मंदिर स्वयं कुबेर जी ने बनाया है। अब्दुल हसन, जो सम्राट अकबर के नौ रत्नो मे से एक थे। जिन्होने मुल्ला दो प्याज़ा नामक हास्यकृति की रचना की थी। ऐसा कहा जाता है कि अकबर के ये सेनापति अब्दुल हसन, जो बाद मे मुल्ला दो प्याज़ा के नाम से प्रसिद्ध हुए, इनकी मृत्यु हँडिया मे ही हुई थी। अतः यहा उनका स्मारक बनाया गया है। हँडिया से लगभग 3 कि मी दूर एक टीले पर तेली की सराय स्थित है। इस सराय को मध्यप्रदेश राज्य सरकार ने संरक्षित स्मारकों के वर्ग मे समाविष्ट किया है। इतिहासकर बताते है कि यह सराय एक तेली साहूकार ने अपने ग्राहको के रहने के लिए तैयार करवाई थी। इस सराय के चारो तरफ लगभग 101 कमरे है।
मकडाई - भीरंगी रेल्वे स्टेशन से 24 कि मी दूर व हरदा शहर से 37 कि मी दूर स्थित है जागीरदारी रियासत का मकड़ाइ गाँव, यहा ऊंचे पहाड़ पर एक किला है। यहाँ राजघराना, राजगौंड कुटुंब के वंशज बताया जाता है। इस किले मे लकड़ी का काम अद्वितीय है। किले मे स्थित श्रीराम मंदिर, सराय और राजा का न्यायालय दर्शनीय है।
चिचोटकुटी छिपानेर - हरदा से लगभग 30 कि मी दूर नर्मदा किनारे स्थित है, छिपानेर गाँव। इस गाँव मे लगभग 200 वर्ष पुराना श्रीराम मंदिर है। इस मंदिर मे भाविक लोग 200 वर्षो से राम सप्ताह का आयोजन कर रहे है। स्थानिक ग्रामीण बताते है कि राम सप्ताह की स्थापना राखी पोर्णिमा के दूसरे दिन से की जाती है व जन्माष्टमी के दूसरे दिन इसका विसर्जन किया जाता है। छिपानेर ग्राम से 2 कि मी दूर स्थित है, चिचोट ग्राम जो बाबा बजरंगदास व स्वामी तिलक जी इनकी कर्मभूमि है। गुरुपौर्णिमा पर इस गाँव मे बहुत भीड़ रहती है। देश विदेश से भक्त यहा आते है। यहा 7 8 भाषाओ की पुस्तकों का सुंदर पुस्तकालय है। पास ही मे गोंदागाँव गंगेसरी है, जहा प्राचीन मठ है। नर्मदा, गंजाल और गोमती इन तीनों नदियो के संगम पर स्थित ये मठ, गंगसरी मठ कहा जाता है। इस मठ मे सद्गुरु दत्तात्रेय भगवान की मनोहारी मूर्ति है।
इस प्रकार हमारी थोडी यात्रा पूरी हुई, कुछ स्थल बाकी रहे जिनकी चर्चा हम अगली बार करेंगे।
अच्छा मित्रो अगले हफ्ते फिर मिलेंगे किसी नए विषय के साथ। जय जन्मभूमि कर्मभूमि।
स्वस्थ रहिए, मस्त रहिये, मुसकुराते रहिए। धन्यवाद।
- जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा।