श्री दत्त गुरु महाराज
नमस्ते मित्रो,
अत्री ऋषि की पत्नी देवी अनुसुइया की प्रशंसा तीनों लोकों में होने लगी। इससे देवी माता लक्ष्मीजी, दुर्गाजी व सरस्वतीजी काफी परेशान हो गईं और उनकी परीक्षा लेने भगवान ब्रम्हा, विष्णु व महेश को भेजा। वे तीनों साधु बनकर अनुसुइया के पास पहुंचे व उनसे निर्वस्त्र होकर भिक्षा देने को कहा। पहले तो अनुसूइया धर्मसंकट मे पड़ गयी वे ऐसा कैसे करेगी फिर सती अनुसुइया ने कुछ मंत्रोच्चार किया और उन त्रिदेवों को नवजात बालक बना दिया तथा उन्हें भिक्षा के रूप मे स्तनपान कराने लगी। इधर जब बहुत देर तक तीनों देव वापस नहीं आए, तो तीनों देवियां अनुसुइया के यहां पहुंचीं व देवों के बारे में पूछने लगीं। अनुसुइया बोली - ‘‘तीनों देव यहां नहीं आए।’’ तब वहां नारदजी प्रकट हुए व उन्होंने कहा कि अंदर जो बालक हैं, वही तीनों देव हैं। अनुसुइया ने तीनों देवों को अपने असली रूप में लाने हेतु पुनः कुछ मंत्र पाठ किया। तीनों देवों ने असली रूप में आकर भगवान दत्तात्रेय का अवतार लिया। उसी दिन दत्त प्रभु का जन्म हुआ।’ ’
दत्त अवतार की यह कथा तो आप सभी को पता ही होगी। दत्त अर्थात हम ही ब्रम्ह है, गुरु है, आत्मा है। निर्गुण की अनुमति देने वाला, अवधूत सदा आनंदी रहने वाला, प्रत्येक क्षण वर्तमान मे जीने वाला, अपने ज्ञान से सारा अज्ञान मिटाने वाला, कल्याणकारी, सभी भक्तो के हितचिंतक, ऐसे है श्री गुरुदेव। जिनके लिए कहा जाता है ‘‘दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा’’। दिगंबर अर्थात सभी दिशाओ के स्वामी, श्रीपाद अर्थात लक्ष्मी के स्वामी। जिनका एक नाम दत्तात्रय भी है, जिसका अर्थ है अत्री ऋषि के पुत्र। इनका पहला अवतार आंध्रप्रदेश पिठापुर, दूसरा अवतार नरसिंह सरस्वती सन्यास अवतार, इस अवतार मे लाड करंजा मे जन्म लिया व नर्सोबावाड़ी मे 12 वर्ष साधना की, इसके बाद श्री क्षेत्र गाणगापुर मे आजीवन रहे। तीसरा अवतार अक्कल कोट के श्री स्वामी समर्थ, जिनहोने भक्तो को मानसिक आधार व धैर्य दिया। वे कहते थे डरो मत, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हु। श्री दत्त गुरु को पीला बहुत पसंद है।
श्री दत्त भगवान की त्रिमुखी प्रतिमा, जिसमे उनके पास गाय, चार कुत्ते व औदुंबर का वृक्ष है, यह आपने देखा होगा पर क्या आपने एकमुखी दत्त मंदिर देखा है, जी हाँ उज्जैन भैरवगढ़ मे एकमुखी दत्त की मनोहारी प्रतिमा है। ऐसी ही एक दुर्लभ प्रतिमा श्री क्षेत्र नारायणपुर महाराष्ट्र व कोल्हापुर महाराष्ट्र मे भी है। यहा प्रभु का भव्य दिव्य मंदिर है व अनेकों भाविक दर्शन के लिए आते है।
अच्छा मित्रो अगले हफ्ते फिर मिलेंगे किसी नए विषय के साथ। जय गुरुदेव दत्त।
स्वस्थ रहिए, मस्त रहिये, मुसकुराते रहिए। धन्यवाद।
- जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा।