• 11 August 2023

    देव और दानव

    देव और दानव

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    देव और दानव


    दोस्तों, शीर्षक पढ़कर आपको लग रहा होगा कि कोई पौराणिक कथा होगी, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यहां देव और दानव का तात्पर्य सही और गलत से है। जी हां, हम सब बहुत सी पौराणिक कथाएं पढ़ते हैं और जानते हैं कि हर युग में आवश्यकतानुसार रीति रिवाज तथा नियमों में परिवर्तन हुए हैं। जो कि उस विशेष काल के लिए उपर्युक्त थे। और इन्हीं परिवर्तन के कारण ही संसार सुचारू रूप से चल सका। इसीलिए तो कहते हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है।

    परंतु कुछ लोग होते हैं जो परिवर्तन के सदा विरूद्ध दिखाई पड़ते हैं।समाज में अथवा जीवन में सुक्ष्म परिवर्तन भी उन्हें असहनीय होता है। और जब उनकी अभिलाषा के विरुद्ध विकास तथा नियम होते हैं तब वह असामाजिक तत्व बनकर, समाज को तथा लोगों को क्षति पहुंचाने का कार्य करते हैं। वहीं दूसरी ओर कई लोग समाज के उत्थान हेतु सदा प्रयासरत रहते हैं एवं किसी भी कुरीति द्वारा हानि होने से रोकने हेतु तत्पर होते हैं। तो इन सब बातों से तो यह समझ में आता है कि यह चरित्र है जो किसी को बुरा या भला करने को प्रेरित करता है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि चरित्र निर्माण विचारधारा से होता है?! जी हां, हण जैसे सोचते हैं उसी के अनुरूप कर्म करते हैं। हमारी सोच ही शनै: शनैः व्यवहार तथा चरित्र रूप लेती है। अर्थात् जो लोग सदा ही समय की धारा को रोकने की चेष्टा करते हैं वह दानव श्रेणी में आते हैं। वह सदियों से चली आ रही एक विशेष सोच के गुलाम हो जाते हैं तथा उसी पर अडिग रहकर परिवर्तन की राह का कांटा बनते हैं।

    हमारे समाज में समय समय पर कुछ ऐसे नियम बनाए गए जो तब के समय के लिए उचित थे परंतु आज के परिदृश्य में उनमें अवश्य ही बदलाव की आवश्यकता महसूस होती है। पुराणों तथा वैदिक ग्रंथों में जो भी कहा गया है वह सत्य है प्रमाणित भी है परंतु जीवन शैली के प्रवाह को रोककर पुनः उस काल की तरह जीवनयापन संभव भी नहीं। कुछ रीतियों को हमारे ही समाज के लोगों ने तोड़ मरोड़ अपनी इच्छा तथा फायदे के लिए दुरुपयोग किया है। और ऐसे दूषित तथा लकीर के फकीर सोच वालों को समाज सुधारकों ने प्रत्युत्तर भी दिया है। परंतु आज दुनिया चाहे पहनावे तथा रहन सहन में कितनी ही आधुनिक हो गई हो, सोच का दायरा अब भी बहुतों के लिए सीमित तथा संकीर्ण है। ऐसे में जब दो विभिन्न विचारधाराओं वाले पक्ष टकराते हैं तब विनाशकारी प्रभाव देखने को मिलते हैं जैसे हम युगों-युगों से देखते आ रहे हैं। इसीलिए ही जो 'नव' विचारों के विरूद्ध है वह है 'दानव'। हमें किस श्रेणी में रहना है वह हमें निश्चय करना है।


    धन्यवाद

    निशी मंजवानी ✍️



    निशी मंजवानी


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