• 20 August 2023

    मनोविज्ञान, जीवन, तुलनाएं

    मानव मन की अंतहीन यात्रा

    4 20



    बीबीए और एमबीए की क्लासों में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लो से परिचय हुआ वहां उनकी Maslow's hierarchy of needs थ्योरी को पढ़ा, उनकी थ्योरी के अनुसार मनुष्य के जीवन के तीन-चार चरण होते हैं और उन चरणों को पाकर या वहां पहुंचकर वह संतुष्ट हो जाता है।

    उस थ्योरी के चरण कुछ ऐसे थे कि सबसे पहले मनुष्य रोटी, कपड़ा, मकान चाहता है जब उसे रोटी, कपड़ा, मकान मिलता है तो वह कहता है कि और यह समाज मुझे इज्जत क्यों नहीं दे रहा वह इज्जत पाने का प्रयास करने लगता है, इज्जत मिलने के बाद उसे लगता है उसने तो समाज में इतना ज्यादा योगदान दिया है तो आखिर समाज उसे सम्मनित क्यों नहीं कर रहा, अख़बार में उसकी तस्वीर क्यों नहीं छप रही उसकी शान में कसीदे क्यों पढ़े जा रहे फिर उसकी सारी भाग-दौड़ सम्मान पाने की हो जाती है, जैसे ही उसे जोड़-तोड़ करके तिकड़म लगाकर सम्मान प्राप्त होता है उसे लगने लगता है की वह तो इतना सम्मानित व्यक्ति है तो भला हर कोई उसे भगवान की तरह पूज क्यों नहीं रहा चांद सितारे उसके इशारों पर क्यों नहीं चल रहे।

    इस तरह उस थ्योरी के अनुसार मनुष्य की पूरा जीवन भगवान बनने की चाहत में खत्म हो जाता है हालाकी ऐसा होता तो भी ठीक था, असल जिंदगी में मैंने पाया है कि मनुष्य रोटी, कपड़ा, मकान, सुख सुविधाओं जैसी बेसिक जरूरतों से ही बाहर नहीं निकल पाता है।

    उदाहरण के तौर पर वह अपनी यात्रा सरसों के तेल खाने से शुरू करता है फिर बाजार उसके कान में आकर कहता है कि भैया घी/ऑर्गेनिक घी के बारे में पता है आपको वो ज्यादा हेल्दी होता है, कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद फिर बाजार उसके कान में आकर कहता है कि भैया ऑलिव ऑयल का नाम सुना है आपने, जब वह ऑलिव ऑयल तक पहुंचता है फिर बाजार उसके कान में आकर कहता है कि भैया ऑर्गेनिक ऑलिव ऑयल का नाम जानते हैं क्या आप ?

    इसी तरह पहले आदमी किराए के घर से या 1RK से अपना सफर शुरू करता है फिर 1BHK से होता हुआ सेम सोसायटी में 3BHK तक पहुंचता है, जैसे ही उसे लगता है उसे कुछ हासिल हो गया है फिर बाजार आकर उसके कान में कहता है कि भैया एक पाश सोसायटी में प्लैट मिल रहा है बस बजट में थोड़ा एडजस्ट करना पड़ेगा, और वो 3BHK से 1BHK पर आ जाता है या फिर 3BHK लेकर ईएमआई बंधवा लेता है और किश्तें भरने लगता है।

    अब इसमें होता यह है की जब भी उसकी परिस्थिति बदलती है तो उसके खर्चे बढ़ जाते हैं और जैसे ही उसका परिवेश बदलता है तो उसकी शुरुआत फिर से शून्य से होने लगती है, जैसे मोटर साइकिल वाले के चार दोस्त साइकिल वाले हों तो उसकी इज्जत होगी लेकिन अगर मोटर साइकिल वाले के चार दोस्त कार वाले हों तो मोटर साइकिल वाला असुरक्षा की भावना से घिर जाएगा और अपनी स्थिती ना देखते हुऐ कार लेने की कोशिश करने लगेगा वो भी उन चारों से अच्छी कार।

    कुछ समय पहले मेरी एक मित्र से मुलाकात हुई मित्र ने बताया कि वह इलेक्शन की तैयारी कर रहे हैं, उन्होंने बताया कि उन्होंने कुछ करोड़ का जमा कर रखे हैं टिकट लाने और इलेक्शन लड़ने के लिए, बस एक बार वो विधायक बन जायें फिर उनका कोई लक्ष्य नहीं है बस समाजसेवा में जीवन समर्पित कर देंगे।

    मैंने उनकी बातें गौर से सुनी और उसके बाद उन्हें कहा कि मान लो भाई की विधायक का टिकट आपको मिल गया और आप चुनाव जीतकर विधायक बन गए, तो सबसे पहले तो आप अपने वह पैसे निकलोगे जो आपने चुनाव में खर्च किए हैं, उसके बाद आप उन पैसों की व्यवस्था करोगे जिनकी आपको अगले इलेक्शन के लिए जरूरत पड़ेगी।

    इस सबके बीच आपको पता चलेगा कि विधायक के पास तो कुछ ताकत ही नहीं होती है विधायक से ज्यादा ताकत तो मंत्री के पास होती है, फिर आप मंत्री बनने का प्रयास करने लगोगे और अब मंत्री बनने के लिए भी आपको पैसों की जरूरत पड़ेगी तो जहां से आप पैसों की व्यवस्था करोगे बदले में आपको उनके भी कुछ काम करवाने होंगे, मंत्री बनने के बाद आपको पता चलेगा कि जो विभाग आपको मिला है उस विभाग में तो दम ही नहीं है, फिर आप एक अच्छे विभाग के लिए संघर्ष करने लगोगे अच्छे विभाग के लिए जब आप संघर्ष करोगे तो उसके लिए भी आपको और मोटा पैसा देना पड़ेगा, इस सबके बीच आपका मुख्यमंत्री से लगातार मिलना-जुलना होगा और आपको पता चलेगा कि मुख्यमंत्री तो बहुत ही मुर्ख आदमी (क्योंकि ज्यादातर मामलों में हर आदमी खुद को विद्वान दूसरे को मूर्ख ही मानता है) है इसकी जगह तो मुझे मुख्यमंत्री होना चाहिए था।

    इस तरह आपका पूरा जीवन जोड़-तोड़ में बीत जाएगा और अगर आप मुख्यमंत्री बन ही गए तो आपको पता चलेगा की जो ताकत आपको लगता था विधायक बनकर आपको प्राप्त होगी वो ताकत तो असल में मुख्यमंत्री के पास भी नहीं होती है।

    मुझे लगता है चंद लोग ही Maslow's hierarchy of needs थ्योरी के अंतिम चरण तक पहुंच पाते होंगे शायद वो भी नहीं, इसलिए वर्तमान समय में मुझे यह थ्योरी काफी ज्यादा काल्पनिक लगती है। लगभग हर क्षेत्र में "थोड़ा और थोड़ा और" करते हुए मनुष्य अपना अनमोल जीवन गंवा देता है कमाल की बात है इस बात का उसे कभी पता ही नहीं चलता, हालाकी वो "जो प्राप्त है पर्याप्त है" का रास्ता भी चुन सकता था।☺️




    Vipul Joshi


Your Rating
blank-star-rating
PURNIMA JOSHI - (20 August 2023) 4
अति सुन्दर प्रस्तुति है तथ्यात्मक और प्रासंगिक

1 0